कहानी

कहानी – बेटी की मजबूरी

महीने के अंतिम रविवार को अक्सर मैं मोरान के शिवालिक वृद्धाश्रम में जाती हूँ और वहां रह रहे माता-पिता के साथ बात करके उन्हें लेशमात्र प्यार- अपनत्व देकर मुझे बहुत संतुष्टि होती है। आज भी महीने का अंतिम रविवार था। मैं अपने सभी दैनिक कार्यों को समाप्त कर कुछ खाने पीने की सामग्री तथा कुछ अन्य सामान लेकर शिवालिक की तरफ चल दी। कुछ मिनटों की यात्रा के उपरांत मैं शिवालिक वृद्धाश्रम के सामने थी। मेरे घर से कैब द्वारा शिवालिक की दूरी 20-25 मिनट की है।
अंदर जाकर में वार्डन से मिली। उन्हें सब सामान देकर कक्ष की ओर चल दी। बड़े-बड़े एक एक हॉल में दस-दस लोगों के रहने की
व्यवस्था थी। कुछ पर्सनल कमरे भी थे। सब मिलाकर एक सौ दस के करीब माता-पिता वहां पर रहते थे। जिनकी आयु साठ से अस्सी के बीच की थी। ज्यादातर माता-पिता मुझे पहचानने लगे थे। मैं हर एक हॉल में जाकर चरण- स्पर्श करके उनका हाल-चाल पूछती। कुछ तो यहां रहकर मजबूत हो चुके थे और इसी को अपना घर व किस्मत मान चुके थे। पर कुछ का मन तो अभी भी अपने बच्चों को देखने के लिए तरसता रहता था। वे लोग कहते थे कि देखना एक दिन हमारे बच्चे जरूर आयेंगे और हमें यहां से ले जायेंगे। वे हमेशा उदास रहते थे। दिन प्रतिदिन उनका शरीर भी कमजोर हो रहा था। मैं और वार्डन उन्हें बहुत समझाते थे कि आप अपने बच्चों की चिंता छोड़ दें। आपको यहां कोई कष्ट न होगा। पर आखिर वे भी तो माता-पिता हैं। अपने बच्चों को कैसे छोड़ दे। उन्होंने बच्चों को जन्म देकर प्यार से पाल- पोस कर बड़ा किया है। उन्हें अपने प्यार पर भरोसा है। पर उनके बच्चों का प्यार सब कुछ भूल कर मर चुका है। पांच साल में कभी बच्चों ने उनकी खोज खबर नहीं ली।
इसी क्रम में सभी माता-पिता से मिलते हुए वार्डन ने बताया कक्ष नंबर तेरह में एक बेटी की माँ चित्रलेखा है। यहां आए हुए लगभग दो महीने हुए हैं। बेटी ने माँ के लिए स्पेशल कमरा लिया है। तीस हजार रूपए महीने का तय हुआ है। उसकी मां को सभी सुख सुविधाओं में रखा गया है। इनकी बेटी नीरजा छह महीने का एडवांस देकर गई है और बिन नागा हर दिन अपनी माँ से मिलने भी जरूर आती है।
वार्डन के इतना बताने पर मैं कुछ देर सोच में पड़ गई कि जो बेटी अपनी माँ को यहां रखकर इतना खर्च कर रही है। वह उसे अपने साथ क्यों नहीं रख सकती है।
मैं वार्डन के साथ जब माँ चित्रलेखा के कक्ष में गई तो देखा कि वह अपने हाथ में शीशा लिए अपना चेहरा देख रहीं थीं। वार्डन ने बताया कि ये हमेशा हाथ में शीशा पकड़े रहती हैं और अपना चेहरा देखती रहती हैं। किसी से कुछ नहीं बोलती हैं। बस सबको शीशा दिखाती रहती हैं। इनकी बेटी नीरजा ने सभी बड़े-बड़े डॉक्टरों को दिखा दिया है। पर कोई ठीक न कर सका।
मेरे मन में उनकी बेटी से मिलने की जिज्ञासा हो रही थी। वार्डन ने बताया कि हर दिन ग्यारह बजे के करीब उनकी बेटी नीरजा आती है। अपने हाथों से उन्हें नहलाती है। कपड़े बदलती है। अपने हाथों से खाना खिलाती है। कुछ देर उनके साथ समय बिताकर चली जाती है। वार्डन ने कहा बस अभी वो आती ही होगी। चलो ऑफिस में बैठते हैं। मैं नीरजा से मिलने के लिए बेचैन हो रही थी।तभी देखा की एक बड़ी सी गाड़ी से एक संभ्रांत महिला उतरी। उसने ऑफिस में एंट्री करायी। फिर वह अपनी माँ के कक्ष में चली गई। वहां उन्हें तैयार करके घर से लाया हुआ खाना खिलाया। कुछ देर उनके साथ बैठ कर ऑफिस में आई।
वार्डन ने मेरा परिचय करवाया कि यह एक लेखिका हैं। हर रविवार को यहां आती हैं। नीरजा ने मुझे नमस्कार किया। थोड़ी सी औपचारिक बातचीत के बाद मैंने नीरज से कहा- अगर आप बुरा न माने तो क्या मैं माँ के विषय में कुछ पूछ सकती हूँ। नीरजा ने कहा- जी अवश्य। अब मैंने नीरजा से पूछना शुरू किया। बेटा नीरजा मुझे तुम्हारी माँ का अतीत जानने की बहुत इच्छा है और तुम माँ पर इतना खर्च करती हो। प्रतिदिन उनके लिए घर से खाना लाती हो। उनकी सेवा करती हो। तो तुम उन्हें अपने घर में क्यों नहीं रखती हो।
नीरज ने कहा- मेम मैं सब कुछ बताती हूँ। मेरे पिता का बहुत अच्छा व्यवसाय था। मेरी माँ के पिता जी भी उस जमाने में कलेक्टर थे। मेरी माँ ने उस जमाने में फैशन शोज किए हैं। वह बहुत सुंदर थीं और उनकी परवरिश भी बिल्कुल राजकुमारी की तरह हुई है। मेरे पिता की कैंसर रोग से पचास साल की आयु में ही मृत्यु हो चुकी है। मैं अपने माता-पिता की इकलौती संतान हूँ। मेरे पति एक कंपनी में मैनेजर हैं। वे भी माँ का बहुत ध्यान रखते हैं। आज मेरे पिता जी को गए दस साल हो गए हैं। तब से माँ मेरे पास ही रहती हैं। अभी माँ की आयु 62 के आसपास होगी। मेरी मां पिता जी उम्र में बड़ी हैं। इनकी उस जमाने में लव मैरिज हुई थी। अभी कुछ महीनों से माँ के अंदर एक परिवर्तन हुआ है कि वो हर समय शीशा हाथ में लिए चेहरा देखती रहती हैं और जो भी उन्हें मिलता है। उसे शीशा दिखाती हैं। हमने डॉक्टरों को दिखाया तो उन्होंने बताया कि यह अपने बुढ़ापे में खोती हुई सुंदरता को स्वीकार नहीं कर पायीं हैं,और इनके दिमाग पर असर हो गया है। अब यह केवल शीशा देखकर उदास रहती हैं। हर समय शीशा पकड़े रहती हैं। जो भी घर में आता है। उसके पास जाकर उसे शीशा दिखाती हैं। मुझे और मेरे पति उनके इस व्यवहार से भी कोई आपत्ति नहीं थी। आराम से वो घर पर रह रही थीं। हमारे दो बेटे हैं। एक एक दसवीं में और एक बारहवीं में पढ़ता है। दोनों बच्चे भी नानी को बहुत प्यार करते थे।
पर इधर कुछ दिनों से इनकी मानसिक अवस्था और बिगड़ गई है। हमें फिर भी कोई समस्या नहीं थी। मुख्य समस्या बच्चों की है। जब उनके दोस्त घर पर आते हैं। तो माँ होशो हवास खो देती हैं। कमरे से निकल कर बच्चों के दोस्तों के पास चली जाती हैं। उन्हें शीशा दिखाकर उलजुलूल हरकतें करती हैं। बच्चे बहुत दिनों तक तो सहन करते रहे पर अब उन्होंने कह दिया है कि या तो इस घर में हम रहेंगे या नानी रहेंगी। हम अपने मित्रों से अब और अपमानित नहीं हो सकते हैं। एक दिन दोनों बच्चे अपना सामान लेकर रेलवे स्टेशन पहुंच गए थे। अब हमें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। बच्चे अभी इतने बड़े भी नहीं हुए हैं। बड़ा बेटा 17 का और छोटा 15 साल का है। मुझे माँ के विषय में सोच कर रात भर नींद नहीं आती है। मैं अपनी माँ से बहुत प्यार करती हूँ। उनके सिवा अब मेरा कोई नहीं है। कई रातें मैंने तनाव में काटीं। तब जाकर मेरे पति ने इस समस्या का यह हल निकाला है। यहां हम उनको घर जैसा ही रख रहे हैं। पर मैं उनको दूर रखकर संतुष्ट नहीं हूँ। क्या करूँ यह एक बेटी की मजबूरी है।
नीरजा की कहानी सुनकर मेरी आँखें भर आईं। मैंने नीरजा को तसल्ली दी कि तुम चिंता मत करो यह हम सबकी माँ हैं। वार्डन को भी यह बात नहीं पता थी। नीरजा की बात सुनकर उनकी आँखें भी भर आईं थीं। उन्होंने कहा- तुम इनकी बिल्कुल चिंता मत करो। हम इनका पूरा ध्यान रखेंगे। नीरजा ने कहा जब बच्चे होस्टल चले जायेंगे। तब मैं अपनी माँ को पुनः अपने पास ले जाऊंगी।
एक बेटी की मजबूरी और प्रेम के आगे मैं नतमस्तक हो गई।

निशा नंदिनी भारतीय 
तिनसुकिया, असम

*डॉ. निशा नंदिनी भारतीय

13 सितंबर 1962 को रामपुर उत्तर प्रदेश जन्मी,डॉ.निशा गुप्ता (साहित्यिक नाम डॉ.निशा नंदिनी भारतीय)वरिष्ठ साहित्यकार हैं। माता-पिता स्वर्गीय बैजनाथ गुप्ता व राधा देवी गुप्ता। पति श्री लक्ष्मी प्रसाद गुप्ता। बेटा रोचक गुप्ता और जुड़वा बेटियां रुमिता गुप्ता, रुहिता गुप्ता हैं। आपने हिन्दी,सामाजशास्त्र,दर्शन शास्त्र तीन विषयों में स्नाकोत्तर तथा बी.एड के उपरांत संत कबीर पर शोधकार्य किया। आप 38 वर्षों से तिनसुकिया असम में समाज सेवा में कार्यरत हैं। असमिया भाषा के उत्तरोत्तर विकास के साथ-साथ आपने हिन्दी को भी प्रतिष्ठित किया। असमिया संस्कृति और असमिया भाषा से आपका गहरा लगाव है, वैसे तो आप लगभग पांच दर्जन पुस्तकों की प्रणेता हैं...लेकिन असम की संस्कृति पर लिखी दो पुस्तकें उन्हें बहुत प्रिय है। "भारत का गौरव असम" और "असम की गौरवमयी संस्कृति" 15 वर्ष की आयु से लेखन कार्य में लगी हैं। काव्य संग्रह,निबंध संग्रह,कहानी संग्रह, जीवनी संग्रह,बाल साहित्य,यात्रा वृत्तांत,उपन्यास आदि सभी विधाओं में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मुक्त-हृदय (बाल काव्य संग्रह) नया आकाश (लघुकथा संग्रह) दो पुस्तकों का संपादन भी किया है। लेखन के साथ-साथ नाटक मंचन, आलेखन कला, चित्रकला तथा हस्तशिल्प आदि में भी आपकी रुचि है। 30 वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों व कॉलेज में अध्यापन कार्य किया है। वर्तमान में सलाहकार व काउंसलर है। देश-विदेश की लगभग छह दर्जन से अधिक प्रसिद्ध पत्र- पत्रिकाओं में लेख,कहानियाँ, कविताएं व निबंध आदि प्रकाशित हो चुके हैं। रामपुर उत्तर प्रदेश, डिब्रूगढ़ असम व दिल्ली आकाशवाणी से परिचर्चा कविता पाठ व वार्तालाप नाटक आदि का प्रसारण हो चुका है। दिल्ली दूरदर्शन से साहित्यिक साक्षात्कार।आप 13 देशों की साहित्यिक यात्रा कर चुकी हैं। संत गाडगे बाबा अमरावती विश्व विद्यालय के(प्रथम वर्ष) में अनिवार्य हिन्दी के लिए स्वीकृत पाठ्य पुस्तक "गुंजन" में "प्रयत्न" नामक कविता संकलित की गई है। "शिशु गीत" पुस्तक का तिनसुकिया, असम के विभिन्न विद्यालयों में पठन-पाठन हो रहा है। बाल उपन्यास-"जादूगरनी हलकारा" का असमिया में अनुवाद हो चुका है। "स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्व विद्यालय नांदेड़" में (बी.कॉम, बी.ए,बी.एस.सी (द्वितीय वर्ष) स्वीकृत पुस्तक "गद्य तरंग" में "वीरांगना कनकलता बरुआ" का जीवनी कृत लेख संकलित किया गया है। अपने 2020 में सबसे अधिक 860 सामाजिक कविताएं लिखने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। जिसके लिए प्रकृति फाउंडेशन द्वारा सम्मानित किया गया। 2021 में पॉलीथिन से गमले बनाकर पौधे लगाने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। 2022 सबसे लम्बी कविता "देखो सूरज खड़ा हुआ" इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। वर्तमान में आप "इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल न्यास" की मार्ग दर्शक, "शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास" की कार्यकर्ता, विवेकानंद केंद्र कन्या कुमारी की कार्यकर्ता, अहिंसा यात्रा की सूत्रधार, हार्ट केयर सोसायटी की सदस्य, नमो मंत्र फाउंडेशन की असम प्रदेश की कनवेनर, रामायण रिसर्च काउंसिल की राष्ट्रीय संयोजक हैं। आपको "मानव संसाधन मंत्रालय" की ओर से "माननीय शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी जी" द्वारा शिक्षण के क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। विक्रमशिला विश्व विद्यालय द्वारा "विद्या वाचस्पति" की उपाधि से सम्मानित किया गया। वैश्विक साहित्यिक व सांस्कृतिक महोत्सव इंडोनेशिया व मलेशिया में छत्तीसगढ़ द्वारा- साहित्य वैभव सम्मान, थाईलैंड के क्राबी महोत्सव में साहित्य वैभव सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन असम द्वारा रजत जयंती के अवसर पर साहित्यकार सम्मान,भारत सरकार आकाशवाणी सर्वभाषा कवि सम्मेलन में मध्य प्रदेश द्वारा साहित्यकार सम्मान प्राप्त हुआ तथा वल्ड बुक रिकार्ड में दर्ज किया गया। बाल्यकाल से ही आपकी साहित्य में विशेष रुचि रही है...उसी के परिणाम स्वरूप आज देश विदेश के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उन्हें पढ़ा जा सकता है...इसके साथ ही देश विदेश के लगभग पांच दर्जन सम्मानों से सम्मानित हैं। आपके जीवन का उद्देश्य सकारात्मक सोच द्वारा सच्चे हृदय से अपने देश की सेवा करना और कफन के रूप में तिरंगा प्राप्त करना है। वर्तमान पता/ स्थाई पता-------- निशा नंदिनी भारतीय आर.के.विला बाँसबाड़ी, हिजीगुड़ी, गली- ज्ञानपीठ स्कूल तिनसुकिया, असम 786192 [email protected]