ग़ज़ल
उठाए हैं कदम तो हम सहारा ढूंढ ही लेंगे
इन तपती निगाहों का नज़ारा ढूंढ ही लेंगे।
लहरों में समंदर की बड़े तूफान उभरे हैं
तेरी बाहों की कश्ती में किनारा ढूंढ ही लेंगेl
मुझे मालूम है महफिल है आज गैरों की
हम इस भीड़ में अपना हमारा ढूंढ ही लेंगे।
न हो वो चांद हासिल ये गम नहीं मुझको
जमी पे हम कोई टूटा सितारा ढूंढ ही लेंगे।
बड़ा ही सर्द मौसम है बड़ी बेईमान सी रुत है
जला दे जो मुझे ऐसा शरारा ढूंढ ही लेंगे
मेरे दिल पे हुई दस्तक वो एक दिन आएगा जानिब
खो गया है कहीं उसको दुबारा ढूंढ ही लेंगे।
— पावनी जानिब सीतापुर