क्षण
कुछ क्षण –
जीवन में छोड़ जाते हैं
अनगिनत सुखद आयाम |
और
बिखर जाते हैं –
वातायन के निलय में-
तारों की भाँति |
कुछ क्षण –
जीवन को भर देते हैं ,
विषैले दंशों से |
यह सत्य है ,
जीवन का हर क्षण –
हंता और नियंता है |
विचारो
जीवन के कितने क्षणों का किया है हनन तुमने |
और क्षणों ने तुम्हारा |
बने हो नियंता कितने क्षणों के और कितने क्षण बने हैं नियंता तुम्हारे |
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’