ग़ज़ल
वक़्त वक़्त की बात है, नसीबों का खेल है,
बंजर दिल पर प्यार का बीज बोते देखा है।
मैंने सुना था पत्थरों को दर्द नहीं होता,
पर मैंने एक पत्थर दिल को रोते देखा है।
दिल तोड़ कर मेरा जो हँस रहा था कभी,
उसे तन्हा रातों में तकिया भिगोते देखा है।
जो कहा करता था तुझे मैं भूल जाऊँगा,
उसे तस्वीर सीने से लगाये सोते देखा है।
जो अक्सर देता था नसीहत औरों को,
आज उसे खुद को मय में डुबोते देखा है।
मोहब्बत में वादे करता था कभी मुझसे,
उसे इल्जाम लगा कर जुदा होते देखा है।
मोहब्बत नहीं आसाँ दो धारी तलवार है,
फिर भी लोगों को ख्वाब संजोते देखा है।
जज्बातों से खेलते हैं मासूम बनकर लोग,
लोगों को चेहरों पर लगाये मुखौटे देखा है।
नादाँ थी सुलक्षणा जो मोहब्बत कर बैठी,
मोहब्बत में लोगों को सिर्फ खोते देखा है।
— डॉ सुलक्षणा अहलावत