कविता

काल चक्र

काल चक्र
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क्या हो तुम ?
समाहित किये हुए स्वयं में ,
अनेंको
विशेषताओं को |
सृष्टि में सबसे भिन्न-
अनुभूति और भावनाओं से रहित |
संवेदन हीन, अविश्वासी और उद्दंड भी ,
आस्था अनास्था को करते हो विनष्ट ,
निरंकुश भ्रमण करते हो |नहीं जानती मैं तुम्हारा नाम |
पर
लोग कहते है
सर्वशक्तिमान
तुम्ही काल चक्र हो |
तुम्ही काल चक्र हो |
मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016