कविता

दिलखुश जुगलबंदी-15

जुगलबंदी की महफ़िल

”जुगलबंदी एक गुलशन है,
जिसमें काव्य के फूल खिलते हैं,
इस अनोखे गुलशन की महफ़िल में,
अनेक महकीले पुष्प मिलते हैं,
कभी वे पुष्प सुदर्शन कराते हैं,
तो कभी प्रकाश फैलाते हैं,
कभी कुसुम नाम से पल्लवित होते हैं,
तो कभी रवि बनकर नभ को प्रज्ज्वलित करते हैं,
इंद्रेश स्वयं दस्तक देते हैं,
भौंरे चंचल हो गुंजार करते हैं,
जुगलबंदी के इस मोहक गुलशन में,
कई नए सितारे भी चमकते हैं,
और गुलशन का गौरव बढ़ाते हैं.”

‘तुम्हें पहले ही कहा था आँखें उसकी जंगल हैं,
लौटते नहीं हैं फिर वे, जो वहां पाँव धरते हैं’

यह भी खूब कही!
”तुम्हें पहले ही कहा था आँखें उसकी जंगल हैं,
लौटते नहीं हैं फिर वे, जो वहां पाँव धरते हैं,
तुम फिर भी चलते चले गए,
तुमने कहा, ‘हम वो नहीं जो जंगल से डरते हैं,
इसी निर्भयता ने तुम में साहस का संचार किया,
तुमने जंगली जड़ी बूटियों का व्यापार किया,
इसी व्यापार ने तुम्हें कहां-से-कहां पहुंचा दिया,
सच ही तो है, तुमने जंगल को गुलशन समझ लिया था,
अब तो पेड़ों से भी रुपये झरते हैं.”

शब्दों का भी तापमान होता है,
ये सुकून भी देते हैं और जला भी देते हैं.

खूब कही-
शब्दों का भी तापमान होता है,
ये सुकून भी देते हैं और जला भी देते हैं.
तापमान तो तापमान ही होता है,
चाहे -47 डिग्री हो या +47 डिग्री,
-47 डिग्री पर कंपकंपा देता है,
+47 डिग्री पर जला देता है,
उसी तरह शब्दों का जादू भी होता है,
कटु-सच्चे शब्द अपनी कड़वाहट से दुश्मनी बढ़ाते हैं,
मीठे-सच्चे शब्द अपनी मिठास से दोस्ती कराते हैं.
इसलिए शब्दों का प्रयोग तोल-मोलकर करो,
क्योंकि
शब्दों का भी तापमान होता है,
ये सुकून भी देते हैं और जला भी देते हैं.

‘जब शब्द जुगलबंदी करते हैं तो महफ़िल ख़ास होती है,
पढ़ने सुनने वालों के दिलों में एक आस होती है,

वाह क्या बात है!
‘जब शब्द जुगलबंदी करते हैं तो महफ़िल ख़ास होती है,
पढ़ने सुनने वालों के दिलों में एक आस होती है,
वो भी कुछ सीख जाएंगे,
कुछ अच्छा-उपयोगी दुनिया को दे पाएंगे,
बस इसी तरह वे भी जुगलबंदी में रम जाते हैं,
भागते हुए वक्त के कुछ पल थम जाते हैं,
तब होती है जुगलबंदी की महफ़िल में रौनक,
इसी भागती-दौड़ती रौनक में,
आस के फूल खिल जाते हैं.

दिलखुश जुगलबंदी-14 के कामेंट्स में सुदर्शन खन्ना और लीला तिवानी की काव्यमय चैट पर आधारित दिलखुश जुगलबंदी.
सुदर्शन खन्ना का ब्लॉग
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/sudershan-navyug/

लीला तिवानी का ब्लॉग
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/

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*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “दिलखुश जुगलबंदी-15

  • लीला तिवानी

    सिर्फ ख्‍वाहिशों से नहीं गिरते हैं कामयाबी के फूल झोली में,
    कर्म की शाख को पूरी ताकत से हिलाना होता है,
    कुछ नहीं होगा अंधेरे को कोसने से,
    अपने हिस्‍से का दिया खुद जलाना होता है.

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