कैम्पेन
5 जून ‘पर्यावरण दिवस’ के अवसर पर हमारे ‘पर्यावरण सुधार कैम्पेन’ को राष्ट्रपति के विशेष सम्मान से सम्मानित करने की अग्रिम खबर आई थी. हम सभी सदस्यों का उत्साह बढ़ गया था. मेरी स्मृतियों में आज से दो साल पहले की स्मृतियां नाच उठीं.
मैंने एक समाचार पढ़ा था- ”पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 8 लाख साल में सबसे ज्यादा, खतरनाक स्तर पर होगी ग्लोबल वॉर्मिंग.”
इस समाचार ने मेरा सिर चकरा दिया था. मैंने तुरंत विनय भाई को फोन लगाकर इस समाचार के बारे में बताया. विनय भाई ने कहा था- ” जल्द ही अगर सुधार नहीं हुआ तो बहुत बड़ी समस्या से दो चार होना पड़ेगा इंसान को.”
”विनय भाई, क्या हम कुछ कर नहीं सकते? केवल चिंता करने से ही बात बन जाएगी क्या?”
”कर क्यों नहीं सकते? पर्यावरण तो पहले साफ-सुथरा था, हमने ही तो पर्यावरण को प्रदूषित किया है, उसमें सुधार भी हम ही कर सकते हैं. बोलो क्या करना है?”
”आपके कहने के मुताबिक तो पर्यावरण में सुधार के लिए हमें युद्ध स्तर पर काम करना पड़ेगा, इसके लिए सबसे पहले युवाओं को प्रोत्साहित कर एक कैम्पेन चलाना पड़ेगा.” मैंने कहा.
”ठीक है, सबसे पहले हम अपने मित्रों से सम्पर्क करते हैं और शाम को चार बजे बड़े पार्क में मिलते हैं.” विनय भाई ने निर्णय लेने में तनिक भी देर नहीं लगाई.
उसी दिन से हमारा जो कैम्पेन चला था, वह कोई आसान तो नहीं था. पर्यावरण में सुधार लाने की इच्छाशक्ति को जगाना, समय निकालना, काम करना, धन लगाना यानी तन-मन-धन से पूरी तरह शिद्दत से काम करना था. हमारी युवा शक्ति ने इस मुश्किल काम को भी आसान कर दिखाया.
स्थानीय स्तर पर रमेश त्यागी ने मोर्चा संभाला था.
”राज्य स्तर पर काम करने का जिम्मा मुझे सौंप दिया जाए, वहां मेरे अच्छे सम्पर्क हैं.” सुनील शर्मा ने कहा था
”राष्ट्रीय स्तर पर जहां-जहां भी सम्पर्क की जरूरत होगी, उन सभी को मैं संभालूंगा.” विनय भाई ने कहा.
”मुझे तो पॉलिथीन और प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने का जिम्मा दे दीजिए, पॉलिथीन और प्लास्टिक हमारे और धरती मां के सबसे बड़े दुश्मन हैं और हमने इनको अपना सबसे बड़ा सहायक बना रखा है.” संजय का गुस्सा वाजिब था.
”पहले घर-घर जाकर एक-एक युवा को जगाना होगा. यह काम मैं अपने मित्रों के साथ पूरा करूंगा.” सुरेश क्यों पीछे रहता!
फिर तो उनके परिवार, मित्रगण भी अपनी पूरी शक्ति से हमारे साथ जुड़ गए थे. पूरे देश में स्थानीय व राज्य प्रशासन ने हमारा साथ दिया था. मीडिया के योगदान को हम कैसे भुला सकते हैं! सामाचार पत्रों और सोशल मीडिया ने भी प्रचार-प्रसार में पूरा सहयोग दिया. मौसम विभाग ने समय-समय पर हमें अपना तकनीकी सहयोग भी दिया. समय-समय पर पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर के बारे में भी वे हमें सूचित करते रहते थे.
अंत में मौसम विभाग ने ही राष्ट्रपति के पास हमारे राष्ट्रव्यापी कैम्पेन की सफलता की संस्तुति भेजी थी, जिसका सुखद परिणाम, इस सम्मान की सूचना थी.
इस कैम्पेन को विश्वव्यापी बनाने का हमारा इरादा और अधिक तेजी से पल्लवित हो रहा था.
किसी भी काम को पूरा करने के लिए पूरी शिद्दत से काम करना ही पड़ता है. पर्यावरण-सुधार जैसे बड़े काम को पूरा करने के लिए उतना ही बड़ा कैम्पेन चलाकर युद्ध स्तर पर काम करना उचित रहता है. इस काम में बुजुर्गों के अनुभव के साथ युवा शक्ति का पूरा योगदान अनिवार्य है, क्योंकि युवा शारीरिक शक्ति के साथ आधुनिक डिजिटल तकनीक से भी सम्पन्न होते हैं.