मेरी अभिलाषा
5 जून ‘पर्यावरण दिवस’ के अवसर पर विशेष
छोटी-सी कुदाल दिलवादे,
मैं भी गड्ढा खोदूंगा,
उसमें नीम का पेड़ लगाकर,
रोज ही जल से सींचूंगा,
समय-समय पर खुरपी से मैं,
निराई-गुड़ाई भी कर दूंगा,
पेड़ बड़ा हो छाया देगा,
खुशियों से मन भर लूंगा,
इसके हर हिस्से से मिले दवाई,
सबके दुःख मैं हर लूंगा,
मां इतनी-सी बात मान ले,
ये मत कहना छोटा हूं,
पर्यावरण-सुधार में मैं भी,
कुछ सहयोग तो दे दूंगा,
बचपन में ही काम बड़े कर,
कुल को रोशन कर दूंगा.
आदरणीय दीदी सादर प्रणाम। बालक की अभिलाषा तो उस कुएं खोदने जैसी है जो सबकी प्यास बुझाने हेतु जीवन के अमृत अर्थात् जल को उपलब्ध कराने का प्रयास कर रहा हो, वृक्ष लगाने की अभिलाषा जनमानस का मार्ग प्रशस्त करना और अलख जगाना है। आपकी यह रचना पर्यावरण दिवस पर एक शानदार संदेश देती और जागृति लाती है। यह विस्तृत विस्तार की अधिकारी है।
प्रिय ब्लॉगर सुदर्शन भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. बालक द्वारा वृक्ष लगाने की अभिलाषा जनमानस का मार्ग प्रशस्त करना और अलख जगाना है. पूत के पांव पालने में ही दिखाई देते हैं. बच्चा बड़ों के मनोविज्ञान से भी परिचित है, इसलिए वह पहले ही कह देता है-‘मां इतनी-सी बात मान ले,ये मत कहना छोटा हूं,; साथ ही यह भी कह देता है-‘बचपन में ही काम बड़े कर,कुल को रोशन कर दूंगा.’अब तो मां क्या, कोई भी मना नहीं करेगा, बल्कि बालक को पर्यावरण-सुधार में लगा देख बड़े भी प्रेरित होंगे. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
दूसरे के लिए गड्ढा खोदने वाला खुद ही खड्डे-खाई में गिर जाता है, लेकिन पेड़ लगाने के लिए गड्ढा खोदने वाला पेड़ के प्रति तो उपकार करता ही है, संसार का भी उपकार करता है. छोटा-सा बच्चा भी जानता है, कि इस लिहाज से नीम का पेड़ सबसे अच्छा है. एक तो वह छायादार भी है, दूसरे उसका हर भाग दवाई के काम आता है.