गौरैया।
मुंह खोल कर आस से
देखें बच्चे उदास से
चोंच में भर कर देखो
मां कुछ लाई तो होगी।
राह की चुनोतियों को
कैसे कहे उन नीतियों को
कितनी जदोजहद के बाद
कुछ दाने ला पाई है।
तुम अभी नादान हो
समझते नहीं अंजान हो
इस नीड़ पर भी संकट है
ज़िन्दगी बड़ी विकट है।
जब तक है मेरी सांस
टूटने न दूंगी तुम्हारी आस
मुंह खोलो और खा लो
चुग कर लाई हूं कुछ ग्रास।
मनुष्य ने प्रकृति को छेड़ा है
कुछ न जीने लायक छोड़ा है
हर ओर मची त्राहि त्राहि है
प्रदुषण में कितनी सांस गंवाई है।
हमारा अस्तित्व खतरे में है
वो भी परेशां हैं जो पिंजरे में हैं
जीव जन्तु पल- पल तरसते हैं
हार कर तिल – तिल मरते हैं।
हर गौरैया की यही कहानी
चुग कर लाती दाना पानी
बच्चों को पेट भर खिला
खुद के लिए भटकती अंजानी।
कामनी गुप्ता***
जम्मू !