संस्मरण

अतीत की अनुगूंज – ५ : किस्सा काले शेर का

भारत से पलायन कुछ आकस्मिक था।  तब मेरे बच्चे बहुत छोटे थे।  बड़ा बेटा मनु सात बरस का था। दो बेटियां गौरी और राधा  क्रमशः साढ़े तीन वर्ष और ढाई वर्ष की थीं।  बड़े दोनों स्कूल जाते थे।  लखनऊ के कॉल्विन ताल्लुकेदार में दाखिला मिलना कठिन होता था।  अतः माँ ने कहा कि जबतक घर आदि न मिले लंदन में, बच्चों को विस्थापित करना उचित न होगा।  नन्हीं बच्ची अभी शीशी से दूध पीती थी। उसको अलग करना कठिन लगा। अतः मैं बस छोटीवाली को साथ लेकर इंग्लैंड अपने पति के पास चली गयी।

        जल्दी ही हमने घर खरीद लिया और करीब एक वर्ष के बाद मनु और गौरी भी आ गए।    .
        बच्चे जल्दी ही हिल मिल गए।  हालांकि छोटी बेटी को यह समझने में काफी समय लगा कि वह उसके सगे  भाई और बहन थे। बहुत दिनों तक वह उनको ‘वो इंडिया की लड़की’ और उसका भाई कहती रही। अपने खिलौने आदि बांटकर खेलने में भी उसको दिक्कत आई।
        एक दिन सुबह सुबह खूब चीख पुकार सुनाई दी। तीनो झगड़ रहे थे और छोटी राधा का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वह जोर जोर से भाई को झूठा कह रही थी।  मैंने जाकर चुप कराना चाहा मगर लगा कि बहस शांत नहीं होनेवाली। हाथापाई चालू थी। अतः मैं राधा को उठाकर अपने बिस्तर में ले आई।  पतिदेव ने बाकी दो को संभाला।  वह लोग इसे झूठा बता रहे थे।
        आखिर हुआ क्या था ? कहानी बरामद करवाने में काफी जोड़ तोड़ करनी पडी। दोनों पार्टियां अपने अपने सत्य पर अटल थीं।  बड़े बेटे को लखनऊ बहुत याद आता था। उसने बताया कि कैसे अक्सर शाम को वह दोनों लखनऊ के चिड़ियाघर में नौकर के संग घूमने जाते थे। वहाँ  हाथी, अजगर और शेर देखते थे,  झूले झूलते थे वगैरह। राधा सुबह से एक प्ले स्कूल में जाती थी पूरे दिन के लिए। शाम को मैं उसको घर ले आती थी। लखनऊ की यादों में खोये बच्चे अपनी हाँक रहे थे। मगर राधा कैसे न मुकाबिला करती भला ? झट से बोली कि उसने भी शेर देखा है लंदन में।  भाई ने अविश्वास से पूछा कहाँ देखा ज़ू में ? अब राधा चुप। ज़ू को वह क्या जाने। पर बात पर अड़ी रही।  तब मनु ने पूछा अच्छा बता शेर किस रंग का होता है।  राधा ने झट कहा काले रंग का।  यह सुनकर लखनऊ वाले हंसने लगे। अरे कभी शेर भी काला होता है?
हाँ बिलकुल काला होता है। हमारे लंदन में चार काले शेर हैं। उँगलियाँ गिनकर बोली वन, टू, थ्री, फोर।
अब और भी मज़ाक उड़ाया गया उसका। सो दोनों दलों में ठन गयी। उन दोनों ने राधा को झूठा बताया। अब तो दंगल छिड़ गया। राधा का चिल्लाना ऐसा पहले कभी न देखा सुना।
          खैर उसको मैंने शांत कराया।  फिर आराम से पूछा , राधा तूने काले शेर कहाँ देखे ? बेचारी चार वर्ष की अबोध बच्ची मुझको अविश्वास से देखकर बोली। तुम्हीं ने तो दिखाए थे जब हमने ढेर सारे कबूतरों को दाना खिलाया था ,जब हम बस में बहुत दूर  गए थे।
         सच बोलूं तो मुझको दो मिनट लगे उसकी बात समझने में।  हम उसको लेकर लंदन के ट्राफलगर स्क्वायर गए थे। यह लंदन का केंद्र माना जाता है।  यहाँ ट्राफलगर का युद्ध जीतने की ख़ुशी में एक मीनार बनी है और उसके चार कोनो  पर चार काले पत्थर के विशालकाय  शेर चार दिशाओं की ओर मुंह करके बैठे हैं। इस चबूतरे के चारों ओर खुला प्रांगण है , तालाब है , और पर्यटक यहाँ कबूतरों को देखते हैं। खासकर बच्चे।
          अपनी समझ से राधा सच्ची थी। उन दोनों ने अभी यह स्थान नहीं देखा था। छुट्टी का दिन था। हम उसी दिन तैयार हुए और उनको लंदन की सैर कराने ले गए।
         बच्चे कभी झूठ नहीं बोलते। हम उनपर अपने नियम थोपकर चुप करा देते हैं परन्तु आपकी स्मृतियाँ आपकी अस्मिता को परिभाषित करती हैं।  उनकी जड़ में क्या है हमको समझना चाहिए।

*कादम्बरी मेहरा

नाम :-- कादम्बरी मेहरा जन्मस्थान :-- दिल्ली शिक्षा :-- एम् . ए . अंग्रेजी साहित्य १९६५ , पी जी सी ई लन्दन , स्नातक गणित लन्दन भाषाज्ञान :-- हिंदी , अंग्रेजी एवं पंजाबी बोली कार्यक्षेत्र ;-- अध्यापन मुख्य धारा , सेकेंडरी एवं प्रारम्भिक , ३० वर्ष , लन्दन कृतियाँ :-- कुछ जग की ( कहानी संग्रह ) २००२ स्टार प्रकाशन .हिंद पॉकेट बुक्स , दरियागंज , नई दिल्ली पथ के फूल ( कहानी संग्रह ) २००९ सामायिक प्रकाशन , जठ्वाडा , दरियागंज , नई दिल्ली ( सम्प्रति म ० सायाजी विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी एम् . ए . के पाठ्यक्रम में निर्धारित ) रंगों के उस पार ( कहानी संग्रह ) २०१० मनसा प्रकाशन , गोमती नगर , लखनऊ सम्मान :-- एक्सेल्नेट , कानपूर द्वारा सम्मानित २००५ भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान हिंदी संस्थान लखनऊ २००९ पद्मानंद साहित्य सम्मान ,२०१० , कथा यूं के , लन्दन अखिल भारत वैचारिक क्रान्ति मंच सम्मान २०११ लखनऊ संपर्क :-- ३५ द. एवेन्यू , चीम , सरे , यूं . के . एस एम् २ ७ क्यू ए मैं बचपन से ही लेखन में अच्छी थी। एक कहानी '' आज ''नामक अखबार बनारस से छपी थी। परन्तु उसे कोई सराहना घरवालों से नहीं मिली। पढ़ाई पर जोर देने के लिए कहा गया। अध्यापिकाओं के कहने पर स्कूल की वार्षिक पत्रिकाओं से आगे नहीं बढ़ पाई। आगे का जीवन शुद्ध भारतीय गृहणी का चरित्र निभाते बीता। लंदन आने पर अध्यापन की नौकरी की। अवकाश ग्रहण करने के बाद कलम से दोस्ती कर ली। जीवन की सभी बटोर समेट ,खट्टे मीठे अनुभव ,अध्ययन ,रुचियाँ आदि कलम के कन्धों पर डालकर मैंने अपनी दिशा पकड़ ली। संसार में रहते हुए भी मैं एक यायावर से अधिक कुछ नहीं। लेखन मेरा समय बिताने का आधार है। कोई भी प्रबुद्ध श्रोता मिल जाए तो मुझे लेखन के माध्यम से अपनी बात सुनाना अच्छा लगता है। मेरी चार किताबें छपने का इन्तजार कर रही हैं। ई मेल [email protected]