भारत से पलायन कुछ आकस्मिक था। तब मेरे बच्चे बहुत छोटे थे। बड़ा बेटा मनु सात बरस का था। दो बेटियां गौरी और राधा क्रमशः साढ़े तीन वर्ष और ढाई वर्ष की थीं। बड़े दोनों स्कूल जाते थे। लखनऊ के कॉल्विन ताल्लुकेदार में दाखिला मिलना कठिन होता था। अतः माँ ने कहा कि जबतक घर आदि न मिले लंदन में, बच्चों को विस्थापित करना उचित न होगा। नन्हीं बच्ची अभी शीशी से दूध पीती थी। उसको अलग करना कठिन लगा। अतः मैं बस छोटीवाली को साथ लेकर इंग्लैंड अपने पति के पास चली गयी।
जल्दी ही हमने घर खरीद लिया और करीब एक वर्ष के बाद मनु और गौरी भी आ गए। .
बच्चे जल्दी ही हिल मिल गए। हालांकि छोटी बेटी को यह समझने में काफी समय लगा कि वह उसके सगे भाई और बहन थे। बहुत दिनों तक वह उनको ‘वो इंडिया की लड़की’ और उसका भाई कहती रही। अपने खिलौने आदि बांटकर खेलने में भी उसको दिक्कत आई।
एक दिन सुबह सुबह खूब चीख पुकार सुनाई दी। तीनो झगड़ रहे थे और छोटी राधा का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वह जोर जोर से भाई को झूठा कह रही थी। मैंने जाकर चुप कराना चाहा मगर लगा कि बहस शांत नहीं होनेवाली। हाथापाई चालू थी। अतः मैं राधा को उठाकर अपने बिस्तर में ले आई। पतिदेव ने बाकी दो को संभाला। वह लोग इसे झूठा बता रहे थे।
आखिर हुआ क्या था ? कहानी बरामद करवाने में काफी जोड़ तोड़ करनी पडी। दोनों पार्टियां अपने अपने सत्य पर अटल थीं। बड़े बेटे को लखनऊ बहुत याद आता था। उसने बताया कि कैसे अक्सर शाम को वह दोनों लखनऊ के चिड़ियाघर में नौकर के संग घूमने जाते थे। वहाँ हाथी, अजगर और शेर देखते थे, झूले झूलते थे वगैरह। राधा सुबह से एक प्ले स्कूल में जाती थी पूरे दिन के लिए। शाम को मैं उसको घर ले आती थी। लखनऊ की यादों में खोये बच्चे अपनी हाँक रहे थे। मगर राधा कैसे न मुकाबिला करती भला ? झट से बोली कि उसने भी शेर देखा है लंदन में। भाई ने अविश्वास से पूछा कहाँ देखा ज़ू में ? अब राधा चुप। ज़ू को वह क्या जाने। पर बात पर अड़ी रही। तब मनु ने पूछा अच्छा बता शेर किस रंग का होता है। राधा ने झट कहा काले रंग का। यह सुनकर लखनऊ वाले हंसने लगे। अरे कभी शेर भी काला होता है?
हाँ बिलकुल काला होता है। हमारे लंदन में चार काले शेर हैं। उँगलियाँ गिनकर बोली वन, टू, थ्री, फोर।
अब और भी मज़ाक उड़ाया गया उसका। सो दोनों दलों में ठन गयी। उन दोनों ने राधा को झूठा बताया। अब तो दंगल छिड़ गया। राधा का चिल्लाना ऐसा पहले कभी न देखा सुना।
खैर उसको मैंने शांत कराया। फिर आराम से पूछा , राधा तूने काले शेर कहाँ देखे ? बेचारी चार वर्ष की अबोध बच्ची मुझको अविश्वास से देखकर बोली। तुम्हीं ने तो दिखाए थे जब हमने ढेर सारे कबूतरों को दाना खिलाया था ,जब हम बस में बहुत दूर गए थे।
सच बोलूं तो मुझको दो मिनट लगे उसकी बात समझने में। हम उसको लेकर लंदन के ट्राफलगर स्क्वायर गए थे। यह लंदन का केंद्र माना जाता है। यहाँ ट्राफलगर का युद्ध जीतने की ख़ुशी में एक मीनार बनी है और उसके चार कोनो पर चार काले पत्थर के विशालकाय शेर चार दिशाओं की ओर मुंह करके बैठे हैं। इस चबूतरे के चारों ओर खुला प्रांगण है , तालाब है , और पर्यटक यहाँ कबूतरों को देखते हैं। खासकर बच्चे।
अपनी समझ से राधा सच्ची थी। उन दोनों ने अभी यह स्थान नहीं देखा था। छुट्टी का दिन था। हम उसी दिन तैयार हुए और उनको लंदन की सैर कराने ले गए।
बच्चे कभी झूठ नहीं बोलते। हम उनपर अपने नियम थोपकर चुप करा देते हैं परन्तु आपकी स्मृतियाँ आपकी अस्मिता को परिभाषित करती हैं। उनकी जड़ में क्या है हमको समझना चाहिए।