चांद के साथ
चांद के साथ सफर चलो कुछ और करें
यादों में वक़्त बसर चलो कुछ और करें
रात और दिन के पहिए घूमते ही रहते हैं
ख़र्च फ़ुर्सत के पहर चलो कुछ और करें
उधर तुम भी तन्हा-तन्हा से लगते हो
हों ना जुदा अब इधर चलो कुछ और करें
बड़ा पशेमां करती है ये दुनिया हमको
एक दूजे की हम क़दर चलो कुछ और करें
वार दिए इश्क़-औ-मुहब्बत में दिल-ओ-जाँ अपने
अब जो आए हो तुम, नज़र चलो कुछ और करें
क़ुफ़्र रवायत है तो ना बदली जाएगी कभी
ईमाँ कमाने की फ़िक़र चलो कुछ और करें
साथ तुम्हें मेरे ना यह दुनिया देख पाती है
थाम लो हाथ, चलो कहर कुछ और करें
वादे-कसमें, शर्तें-रस्में हैं जमाने के चलन
ये तो निभाये, हमसफर चलो कुछ और करें
— प्रियंका अग्निहोत्री ‘गीत’