बहकावे की हद
साहित्यिक लघुकथा मंच ‘नया लेखन नए दस्तखत’ पर विजेता लघुकथा
”ठहरो” बंदूक वाले शख्स ने कहा.
”मैं तो ठहर गया,” तिरंगे झंडे वाले शख्स ने ठहरते हुए कहा. ”महात्मा बुद्ध की तरह पूछ सकता हूं, तुम कब ठहरोगे?”
”तुम अमन हो?” बंदूक वाले शख्स ने उसे ध्यान से देखते कहा.
”हां, मेरा नाम अमन ही है, लेकिन तुम्हें कैसे पता?” तिरंगा लहराते हुए अमन ने कहा.
”रोशनी धुंधली है, इसलिए तुम शायद देख नहीं पा रहे हो, मैं तुम्हारी जैसी शक्ल का हूं. मुझे लोगों ने बताया था, कि हमने अमन को देखा है, हूबहू तुम्हारी शक्लो-सूरत का है.” बंदूक वाले शख्स ने कहा.
”तुम हामिद तो नहीं हो? मैंने भी सुना था. मेरे जुड़वां भाई को कोई उठाकर ले गया था, अब वह हामिद कहलाता है.” अमन कुदरत के करिश्मे पर हैरान था. ”मुझे पता नहीं था, कि हम जंग के मैदान में मिलेंगे.”
”इसे जंग का मैदान मत कहो भाई, यह तो राम-लक्ष्मण की मिलनस्थली है.” हामिद ने कहा, ”तुम तिरंगे को झुकने मत देना, मैं ही शस्त्र को तिलांजलि देता हूं, जाने किस बहकावे में आ गया!” हामिद ने शस्त्र फेंकते हुए बांहें फैलाईं.
बहकावे की हद समाप्त हो चुकी थी.
अभी-अभी 5 जून ‘पर्यावरण दिवस’ के अवसर पर आपने हमारी एक विजेता लघुकथा ‘छतरी वाली लड़की’ पढ़ी थी. आज हमारी बहू शिप्रा के जन्मदिवस पर पढ़िए एक और विजेता लघुकथा ‘बहकावे की हद’. यह लघुकथा भी ”नया लेखन नया दस्तखत” लघुकथा मंच पर साप्ताहिक लघुकथा प्रतियोगिता में विजेता लघुकथा घोषित की गई थी. यह प्रतियोगिता हर सप्ताह प्रदत चित्र पर आधारित होती है. इस चित्र में दो छोरों पर दो युवा लड़के दिखाए गए थे. एक के हाथ में बंदूक थी, एक के हाथ में भारत का तिरंगा झंडा. शेष बातें आप कामेंट्स में बताएंगे. एक बार फिर हमारी बहू शिप्रा को जन्मदिवस की कोटिशः मुबारकवाद और शुभकामनाएं.