कल मुंशी जी की चोरूमल और चोरीलाल से मुलाकात हो गई। बेचारे बड़े परेशान लग रहे थे। सूखकर कांटा हो गए थे। ऐसा लग रहा था कि मानो सालों से भूखे प्यासे हैं।
मुंशी जी ने पूछा – भई चोरी लाल क्या बात है। धंधा नहीं चल रहा है क्या?
तभी चोरूमल बीच में बोल पड़ा। यह आज के बच्चों ने तो हमारी नाक में दम कर रखा है।
अरे! तुम्हारे बच्चों ने क्या कर दिया?
अरे, मैं अपने बच्चों की बात नहीं कर रहा हूं। मैं तो इक्कीसवीं सदी के समाज के, देश के सभी बच्चों की बात कर रहा हूँ। विशेष कर युवाओं की बात कर रहा हूँ। इन बच्चों की तो रात होती ही नहीं है। दिन की तरह पूरी-पूरी रात टी.वी, कंप्यूटर, मोबाइल पर बैठे रहते हैं। अब आप ही बताएं मुंशीजी हम कब चोरी करने जाएं। आज के इन युवाओं ने तो हमारा धंधा ही चौपट कर दिया है। और दिन में तो यह सूरज देवता हमारे दुश्मन हैं। हमने तो और कुछ काम भी नहीं सीखा कि कमाकर खा सकें। बड़ी मुश्किल में हैं। हम तो मोदी सरकार से भी गुहार नहीं लगा सकते हैं। रंगे हाथों पकड़ लिए जायेंगे। बहुत देर से नत्थू चौकीदार मुंशी जी और चोरुमल की बातें सुन रहा था। वह सामने आकर अपना दुखड़ा रोने लगा। मैं पटवारी जी के बंगले पर रात में चौकीदारी करता था। जब से उनका बेटा विदेश से पढ़कर वापस आया है। उन्होंने मुझे नौकरी से निकाल दिया है। कहते हैं कि अब तुम्हारी जरूरत नहीं है। मेरा बेटा सुबह के चार बजे तक जागता रहता है। मूवी देखता है। अपने मित्रों से बातें करता है। वह अमेरिका के बहुत अच्छे कॉलेज से पढ़कर आया है और कुछ काम धंधा नहीं करता है। पर उसने मेरे दस हजार रुपए महीने के बचवा दिए। मैं वो दस हजार अपने बेटे को दे देता हूँ। जो तुम्हें देता था। अब तुम कुछ और काम ढूंढ लो। चौकीदार की जरूरत नहीं है।
तो भई चोरूमल तुम अकेले ही इन युवाओं के सताये हुए नहीं हो हम भी तुम्हारे साथ हैं। सच कहूँ तो युवाओं से ज्यादा इन मोबाइल और कंप्यूटर की कंपनियों ने हमारा धंधा चौपट करवा दिया है। दुखी चोरूमल बोल पड़ा गाज गिरे ऐसी कंपनियों पर जिनके कारण डॉक्टरों के धंधे ने तेजी पकड़ी है। विशेषकर आँखों के डॉक्टरों की तो चांदी ही चांदी है।
नत्थू लाल बोला दुखी मत हो। एक न एक दिन सबके दिन फिरते हैं। तो हमारे भी अच्छे दिन जरूर आयेंगे तब तक भीख मांगकर गुजारा कर लेते हैं। चोरूमल बोला हाँ, आजकल यह धंधा बहुत फल-फूल रहा है। एक दिन की पांच सौ से हजार रुपए तक की कमाई हो जाती है। चलो तो देर किस बात की, सामने साईं बाबा का मंदिर है। लो हाथ पैरों में कुछ पट्टियां बांध लेते हैं।
दोनों मंदिर के बाहर बैठकर साईं बाबा के नाम पर दे दे बेटा। बाबा तेरा भला करेंगे। तेरे बच्चों का भला होगा। अपाहिज भिखारी को दे दो बाबू।
दो घंटे के बाद दोनों अपनी कमाई गिनते हैं। दोनों ने लगभग चार सौ रुपए कमा लिए थे। दोनों अपने नए धंधे से खुश थे। इस धंधे में जितना भी कमाओ टैक्स नहीं देना पड़ता है।
तो आज से……..
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रखे…… ।
— निशा नंदिनी भारतीय
हा हा हा हा… करारा व्यंग्य ! यह पूरी तरह सत्य है !!