“मौसम के सारे फल खाना”
गर्मी का मौसम है आया।
आड़ू और खुमानी लाया।।
आलूचा है या कहो बुखारा।
काला-काला कितना प्यारा।।
खट्टे-मीठे और रसीले।
काले-लाल और हैं पीले।।
सूरज जब शोले बरसाता।
धरती का पारा बढ़ जाता।।
तब ये अपना रूप दिखाते।
मैदानों की प्यास बुझाते।।
अगर चाहते हो सुख पाना।
मौसम के सारे फल खाना।।
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)