एक मुलाकात
कशमकश
भरी जिंदगी
आपाधापी
और उठापटक
के बीच
कभी वक्त ही न था
जिन्दगी के पास
सुहाने स्वप्नों
को सजाते
कब बोझिल हो गयी
आँखे….
जिम्मेदारियों का बोझ
उठाते थकते कंधे
दिखावे का
आडम्बर…
वक्त के
घूमते पहिये
में अटके…
हृदय के संवेगों
को बाँधने का
असफल प्रयास…
करते करते
कभी स्वयं को
नही जाना
चलो आज
स्वर्णिम सितारों के बीच
वक्त के पहिये
को थामकर
मधुर स्मृतियों
में स्वयं को कैद कर
चलो करते है
स्वयं से
एक मुलाकात….!!!!
— गीता गुप्ता ‘मन’