ग़ज़ल
चाल नफरत की वो इस तरह चल गये।
भावना मर गयी प्यार के पल गये।
इस तरह वो बचाते हैं मजलूम को,
आज जाना जहाँ था वहाँ कल गये।
बात हर एक मंज़ूर थी कल तलक,
बोल मेेरे उन्हे आज क्यूँ खल गये।
वक़्त ने घाव मेरा हर इक भर दिया ,
वक्त के साथ शिकवे गिले गल गये।
जिन पे विश्वास खुद से ज़ियादा किया,
वो सनम क्यूँ मुझे बेसबब छल गये।
कुल जहां सेलड़े जिनकी खातिर हमीद,
मुँह पे कालिख वही आज आ मल गये।
— हमीद कानपुरी