पर्यावरण

जल संकट ,हम ,हमारा समाज और हमारी सरकारें

आज भारत एक आर्थिक महाशक्ति तौर पर उभरते हुए देश के रूप में भारतीय मिडिया और कुछ विदेशी मिडिया द्वारा जोरदार ढंग से प्रचारित ,प्रसारित किया जा रहा है ,लेकिन इस देश की बहुत ही विचित्र और बहुत दुःखद विडम्बना यह भी है कि हमारा देश बहुत सी मनुष्य की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ है ,जैसे भूख ,अशिक्षा ,बेरोजगारी , खुशहाली और पीने के लिए स्वच्छ जल आदि के मामले में यह विकसित देशों की बात छोड़िए ,अपने पड़ोसी छोटे-छोटे देशों से भी ,जिन्हें अत्यन्त गरीब और निर्धन देश माना जाता है ,उनसे भी बहुत ही बदतर हालत में है !
        वैसे बहुत ही सुखद आश्चर्य है कि भारत प्राकृतिक संसाधनों के मामले में इस पृथ्वी के  कुछ गिने-चुने प्राकृतिक भूभागों में सम्मिलित है ,जिन्हें प्रकृति ने प्राकृतिक संसाधनों यथा कल-कल करतीं सैकड़ों नदियाँ , दुग्ध धवल ,फेनिल झरनें ,सघन वन्य जीवों से सम्पन्न घने जंगल , हिमाच्छादित उच्च शिखरों वाले पर्वत , विस्तृत रेगिस्तान , बहुत ही विस्तारित देश को तीन तरफ से घेरे मनोरम समुद्र तट ,सोना जैसे अन्न उगलते उपजाऊ खेत , हरे-भरे विस्तृत चरागाहें और प्रतिवर्ष लगभग तीन महिने बारिश का मौसम ,जिसमें सभी ताल-तलैयां ,पोखर ,तालाब ,नदियाँ जल से लबालब भर जातीं हैं आदिआदि मुक्त हाथों से भारत भूमि को प्रदान की है ।
       परन्तु दुःख की बात ये है कि हम प्राकृतिक संसाधनों से इतना समृद्धशाली होते हुए भी यहाँ के साठ करोड़ लोग गर्मी के दिनों में पीने के पानी की एक-एक बूँद के लिए तरस रहे हैं ! हमारे पूर्वज लोग पानी की महत्ता को खूब ठीक से समझते थे ,वे लोग वर्षा के दिनों में प्राकृतिक उपहार स्वरूप वर्षा जल की एक-एक बूँद को सूखे और गर्मी के दिनों की जरूरत के लिए सहेज कर रखने के लिए उस समय भी कुँएं ,बावड़ी ,तालाब ,पोखरों ,छोटे-छोटे बाँध बनाकर इकठ्ठा करने की तकनीक से लैश से थे और एक सामाजिक नैतिकता के तहत समाज के सभी लोग अमूल्य जल को सहेजने और उसकी एक एक बूँद को बचाने को प्रतिबद्ध थे । इसका परिणाम यह होता था कि भारतीय इतिहास में सूखे के दौरान भी अन्न उत्पादन पर भले ही बुरा असर पड़ा हो ,परन्तु उन्हें पानी पीने के संकट का सामना शायद ही कभी करना पड़ा हो !
       समय बदला ,हम कथित आधुनिक होते गये ,कथित विकसित होते गये , कथित विश्व की आर्थिक महाशक्ति की तरफ बढ़ चले ,देश में अरबपतियों -खरबपतियों की संख्या के मामले में दुनिया में तीसरे नम्बर के पायदान पर पहुंच गये ,लेकिन वर्षा जल को बचाने और उसे संकट और सूखे के समय सदुपयोग के मामले में हम ‘अशिक्षित ‘ होते चले गये ,हमने जलसंचय करने वाले पोखरों ,तालाब ,तालतलैयोंं ,जोहड़ों पर अपने हवश व संकीर्ण स्वार्थ हेतु अवैध कब्जा करके ,नदियों के पानी को बड़े-बड़े बाँध बनाकर उन्हें ‘कैद ‘ करके ,उनके सर्वहितकारी ,सर्वसाधारण ,सर्वसुलभ जल को केवल कुछ बड़े पैसे वाले धनिकों के विशुद्ध लाभ के लिए मोटे -मोटे पाइपलाइनों के जरिए बोतलबंद करने वाली कंपनियों में पहुँचा दिया ,देश के लाखों मुहल्लों ,गाँवों ,कस्बों और छोटे-बड़े शहरों व महानगरों में छोटे-छोटे प्लॉटों में करोड़ों सबमर्सिबल पाइपों से हजारों साल से संचित भूगर्भीय जल को अतिनिर्दयतापूर्वक दिन-रात अनवरत खींचकर उसे बड़े-बड़े बोतलों में भरकर बेचने का धंधा करने लगे , परन्तु दुखद रूप से शहरों व महानगरों की खुली धरती को डामर की या कंक्रीट की सड़कों से बुरी तरह ढक कर वर्षा का जल जो धरती में जाकर भूगर्भीय जल को और समृद्ध करता है , का गला घोंट दिया । {भूवैज्ञानिकों के अनुसार वर्षा का कम से कम 31 प्रतिशत जल धरती द्वारा सोखा जाना जरूरी है ,परन्तु शहरों में खुली जमीन ,पोखर ,तालाब आदि सभी कुछ का गला घोंट देने से मात्र 3 प्रतिशत ही वर्षा का जल अब धरती में जा पाता है }।
      प्राकृतिक जंगलों का , शहर विस्तारीकरण के नाम पर ,सड़क-चौड़ीकरण के नाम पर बेतहाशा और निर्ममतापूर्वक काट डाला गया ,इसके एवज में पश्चिमी अपेक्षाकृत ठंडे देशों का अंधानुकरण करके भारत की 5 जून की 48डिग्री सेंटीग्रेट के भयानक भीषण गर्मी में भी ‘ वृक्षारोपण ‘ का ‘छद्मनाटक ‘ करने का हर साल ढोंग करते रहे ,जिसमें लगाए गये पौधों का मात्र 2 प्रतिशत भी वृक्ष नहीं बन पाते ,सभी 98 प्रतिशत शिशुपौधे यहाँ की गर्मी में सूख जाते हैं ! वानिकी और पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार भारत जैसे देश में जो वृक्षारोपण किया जाता है ,उसका दस गुना तेजी से वनों और जंगलों का संहार किया जा रहा है । होना तो यह चाहिए था कि हमारा देश पश्चिमी देशों का अंधानुकरण न करके जुलाई-अगस्त में दो-तीन जोरदार बारिश होने के बाद ही ‘वृक्षारोपण ‘ की विस्तारित और वृहद योजना बनाई जाती ,जिसमें शिशु पौधों की बड़े वृक्ष बनने की प्रतिशत दर बहुत बढ़ जाती ।
       इसलिए हम सभी का पुनीत और पवित्र कर्तव्य है कि हम ,हमारा समाज और हमारी सरकारें वर्षा जल संचय को अपने बच्चों के स्कूलों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित कराकर उन्हें बचपन से ही जल की महत्ता को समझाएं ,हम ,हमारा समाज और सम्पूर्ण देश वर्षा जल को संग्रह करने के लिए पोखरों ,तालाबों ,गड्ढों ,कुँओं ,बावडियों आदि सभी को उनके पुराने रूप में लाकर वर्षा जल को ,जो बारिश के मौसम में यूँ ही व्यर्थ चला जाता है ,संग्रहीत करने का ईमानदारी से कोशिश करनी ही चाहिए ,नदियों की अविरल धारा को पूर्णतः प्रतिबन्धित न करके उन्हें स्वाभाविक रूप से अविरल बहने का यत्न करना ही होगा । जलविद्युत भी उत्पादित हो और जीवनदायिनी नदियों का जीवन भी सुरक्षित रहे ,तभी बात बनेगी { यूरोप की सबसे बड़ी ‘राईन नदी ‘ को जिस प्रकार यूरोप के लोगों ने उसको जिस तरीके से पुनर्जीवित किया ,उनसे हम भारतीयों को सबक लेनी चाहिए }।
        भारत के मुकाबले 2 प्रतिशत वर्षा पानी वाले छोटे से देश इजरायल से हमें प्रेरणा और सीख लेनी चाहिए जो इतने कम पानी के एक -एक बूँद को सहेज कर उसी से अपनी रेगिस्तानी जमीन को हरा-भरा नखलिस्तान बनाकर दुनियाभर को एक मिशाल पेश करके दिखा दिया कि पानी की एक -एक बूँद को सहेज कर और उसका कैसे सदुपयोग किया जा सकता है ।
 — निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

"गौरैया संरक्षण" ,"पर्यावरण संरक्षण ", "गरीब बच्चों के स्कू्ल में निःशुल्क शिक्षण" ,"वृक्षारोपण" ,"छत पर बागवानी", " समाचार पत्रों एवंम् पत्रिकाओं में ,स्वतंत्र लेखन" , "पर्यावरण पर नाट्य लेखन,निर्देशन एवम् उनका मंचन " जी-181-ए , एच.आई.जी.फ्लैट्स, डबल स्टोरी , सेक्टर-11, प्रताप विहार , गाजियाबाद , (उ0 प्र0) पिन नं 201009 मोबाईल नम्बर 9910629632 ई मेल [email protected]