ग़ज़ल
ढले जब शाम आ जाना
मिले पैगाम आ जाना ।
मिले पैगाम आ जाना ।
जो तन्हाई में आ जाये
जुबां पे नाम आ जाना।
बौराई है शाख शाख,
पके फिर आम आ जाना ।
जमीं पर जब कोई पुछे,
चाँद का नाम आ जाना ।
मेरे हर दर्द के मरहम,
बन के आराम आ जाना।
मिले आगाज को मेरे ,
कोई अंजाम आ जाना ।
बिन तेरे मेरे हमदम,
हुए गुमनाम आ जाना ।
करनी है “मन ” की बातें,
आपके नाम आ जाना।
— गीता गुप्ता ‘मन’