मुक्तक
“मुक्तक”
बहुत मजे से हो रहे, घृणित कर्म दुष्कर्म।
करने वाले पातकी, जान न पाते मर्म।
दुनिया कहती है इसे, बहुत बड़ा अपराध-
संत पुजारी कह गए, पापी का क्या धर्म।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
“मुक्तक”
बहुत मजे से हो रहे, घृणित कर्म दुष्कर्म।
करने वाले पातकी, जान न पाते मर्म।
दुनिया कहती है इसे, बहुत बड़ा अपराध-
संत पुजारी कह गए, पापी का क्या धर्म।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी