ग़ज़ल
ठीक सब कुछ यहाँ है बतला दो।
हाथ अपना हवा में लहरा दो।
वो रज़ा खुद ब खुद समझ लेगा,
हाथ से बाल उसके सहला दो।
आप बिन ये लगे मुझे सूना,
घर मेरा आप आ के महका दो।
बाल बच्चे रहें सलामत सब,
नाम से उनके यार सदक़ा दो।
इक नया इंकिलाब तुम लाकर,
नाम पुरखों का अपने चमका दो।
जिस में तस्वीेर है बसी उसकी,
आईना अपने दिल का दिखला दो
आम जनता नहीं है इक बच्चा,
एक टाफी जो दे के बहला दो।
— हमीद कानपुरी