ग़ज़ल
रोज़ उसको न बार बार करो।
जो करो काम आर पार करो।
आ के बैठो गरीब खाने में,
मेरी दुनिया को मुश्कबार करो।
तेरे बिन है खिजाँ खिजाँ मौसम,
आ के मौसम को खुशगवार करो।
जब तुझे मिल गया सनम याराँ,
अब न अाँखों को अश्कबार करो।
माँग ली है हमीद ने माफी,
अब नहीं और शर्मसार करो।
— हमीद कानपुरी