दिलखुश जुगलबंदी- 16
विश्व झूमने लगता है
दिलखुश जुगलबंदी एक काव्य-यज्ञ है,
जिसमें सब अपनी-अपनी काव्य-समिधाएं डालते हैं,
सकारात्मक विचारों को पालते-स्वीकारते हैं,
नकारात्मक तत्वों को नकारते हैं,
तब खिलती है आनंद की बगिया,
कूकती है खुश हो कोयलिया,
भौंरे गीत सुनाते हैं,
सुमन जग को महकाते हैं.
दिलखुश जुगलबंदी वास्तव में एक काव्य-यज्ञ है,
जो अनेक आहुतियां पाकर मंच को सुगन्धित कर रहा है.
रचनात्मकता और क्रियात्मकता फल-फूल रहे हैं
और उपवन की शोभा बढ़ा रहे हैं.
दिलख़ुशी जुगलबंदी रूपी यज्ञ की आहुतियों से,
ब्रह्मांड के ईथर में वेदों की ऋचाएं गूंजती हैं,
जो सृष्टि को पवित्र-पावन कर देती हैं,
इससे धरा पुलकित हो जाती है,
धरा के पुलकित होने से वृक्ष लहलहा उठते हैं,
पंछी चहचहा उठते हैं,
मनुष्यों की मुस्कुराहट भी खिल उठती है,
सृष्टि सौम्यता धारण कर लेती है,
ब्रह्मांड के ईथर में श्री कृष्ण जी की गीता की तरह,
दिलख़ुशी जुगलबंदी गूंजती है,
और सुदर्शनचक्रधारी का चक्र घूमता है,
विश्व झूमने लगता है,
विश्व झूमने लगता है,
विश्व झूमने लगता है.
दिलखुश जुगलबंदी-15 के कामेंट्स में सुदर्शन खन्ना और लीला तिवानी की काव्यमय चैट पर आधारित दिलखुश जुगलबंदी.
सुदर्शन खन्ना का ब्लॉग
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/sudershan-navyug/
लीला तिवानी का ब्लॉग
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/
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इस बार बरसात ने तरसाया है,
गर्मी ने अपना चक्र चलाया है,
मेंढक-मेंढकी की शादी भी करवाई,
बादलों ने फिर भी दरश नहीं दिखाया है,
अब तो सचमुच यज्ञ का ही सहारा लेमा होगा,
श्लोकों-मंत्रों में बहुत शक्ति है,
वेदों-पुराणों-स्मृतियों ने हमें बताया है.