बेकार प्लास्टिक के कूड़े से डीजल !
समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों के अनुसार अब बेकार पड़े खाली प्लास्टिक की पानी की बोतलें , दूध और दही की थैलियां , प्लास्टिक बैग जो दुनियाभर में उपयोग के बाद प्रदूषण की प्रमुख घटक है ,जिनसे दुनिया भर की नदियां ,समुद्र और थल सभी जगह कूड़े का ढेर इकट्ठा होकर मानवप्रजाति के लिए एक गंभीर समस्या पैदा हो जा गई है ,जिसको खा लेने से तमाम तरह के थलीय जीव जैसे गाय ओर सामुद्रिक जीव ह्वेल और कछुओं की जान पर आफ़त बनी हुई है ,उससे वैज्ञानिकों ने ईंधन विकसित करने का दावा किया है ।
इस शोध में मुख्यरूप से वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी , इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम ,देहरादून और इंदौर स्थित ग्रीन अर्थ इनोवेशन नामक संस्थानों ने सक्रिय भूमिका निभाई है । वैज्ञानिकों के अनुसार इन बेकार की प्लास्टिक को पहले छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर ,उस कचरे को एक ट्यूब रिएक्टर में 430 डिग्री सेंटीग्रेट से 571 डिग्री सेंटीग्रेट तक ‘सक्रिय कॉर्बन ‘ के ऊपर रखकर गर्म किया जाता है , चूँकि प्लास्टिक का केमिकल बांड को तोड़ना कठिन होता है और इसमें हाइड्रोजन की मात्रा बहुत होती है ,जो ईंधन का मुख्य घटक होता है , परन्तु इस प्रक्रिया में सक्रिय कॉर्बन उत्प्रेरक का काम करता है और उसे डी-पॉलीमराइजेशन करके अलग -अलग घटकों जैसे 85 प्रतिशत जेट ईंधन और 15 प्रतिशत डीजल ईंधन को सफलतापूर्वक प्राप्त किया ।
प्लास्टिक कचरे से प्राप्त इस ईंधन से भारत में भारी पंप्स ,हॉट मिक्स प्लांट और स्टेज-2 वाहनों को चलाने में सफलतापूर्वक उपयोग किया जा सकता है । अभी यह अन्वेषण अपने प्रारम्भिक चरण में है ,अगर वैज्ञानिक इसका उत्पादन व्यापारिक और बड़े स्तर पर करने में सफलता प्राप्त कर लेतें हैं तो यह इस पृथ्वी के मानवप्रजाति सहित समस्त जैवमंडल और पर्यावरण की स्वच्छता के लिए एक बहुत बड़ा कदम साबित होगा ,क्योंकि कूड़े में प्रमुख घटक इन प्लास्टिक से दुनियाभर के शहर और नगर निगम अत्यन्त परेशान हैं और उससे शहरों में जगह-जगह ‘कूड़े के पहाड़ ‘बनने से प्रदूषण की समस्या से सभी परेशान हैं ।
— निर्मल कुमार शर्मा ,गाजियाबाद