इतना सा भरम रखना
ग़ज़ल
ए दोस्त दोस्ती का, इतना सा भरम रखना।
महफ़िल में लोग होंगे, लहज़े को नरम रखना।।
यूँ चीखने चिल्लाने से बात नहीं बनती।
हो डालना असर तो, फिर बातों में दम रखना।।
हिजाब का सरकना गुनाह नहीं होता।
बातों में अदब ओ’ कुछ आंखों में शरम रखना।।
तितलियां खुशी की, जी भर के कैद कर लो,
पर याद साथ अपने, एक शाम-ए-अलम रखना।।
बुतपरस्ती के गर, कायल नहीं हो तो क्या।
रूहों में ज़रा अपनी तुम दैर-ओ-हरम रखना।।
ज्यादा हों ख्वाहिशें तो, जन्नत नही मिल जाती।
जीना अगर जो चाहो, उम्मीद को कम रखना।।
मेरे किये शिकवों पे, ज्यादा न ध्यान देना।
तरकश में हमेशा ही, ये तीर-ए-सितम रखना।।