परिवार का प्रणेता पिता है
रक्षा हेतु वत्स की खड़ा है
बह्मा सा रचयिता पिता है
विष्णु सा पालक पिता है।
पिता है केंद्र बिंदु परिवार का
पिता है प्रेम सिंधु परिवार का
बरगद की घनी छाया पिता है
पीपल सी संजीवनी पिता है।
बच्चों की मनमानी पिता है
मिस्री सा बचपन पिता है
पीठ पर घुड़सवारी पिता है
कंधे चढ़ाता घुमाता पिता है।
पिता से बनता जीवनाकार
पिता बिन सूना घर संसार
भविष्य को बुनता पिता है
खुशियों को चुनता पिता है।
गर्म सांसों की महक पिता है
सर्वस्व अपना लुटाता पिता है
ससुराल की चौखट पिता है
आन बान शान बनाता पिता है।
वर्णों में अधूरी महिमा पिता की
गौरंवित करती गरिमा पिता की
परमपिता की प्रतिमा पिता है
हरियाली धरा हरितमा पिता है।
— निशा नंदिनी भारतीय
तिनसुकिया, असम