लघुकथा -महिलाओं की दोहरी जिम्मेदारी
रमेश के दूसरा बेटा और बहू नौकरी के साथ-साथ घर की जिम्मेदारी ईमानदारी से निभा रही थे | सास शीतला, “मेरी बहू को मैके से बडों का सम्मान के साथ संस्कार भी मिले है| हर काम समय अनुसार करती है , सुवह शाम रसोई देखना, कपड़े, सबकी जरूरतों का ध्यान रखना, शाम को ससुर जी के साथ दूकान के हिसाब-किताब में साथ देती है| खूब मन और उल्लास से काम करती है| सभी रिश्तेदार भी उसकी तारीफ करते जाते हैं|” अचानक बेटे को सरकारी कोठी मिल गई और वो अलग रहने लगे, पर खाना तो बहू के हाथ का बना ही आता था| परिवार बढा तो सास को चिंता हुई और कुछ दिन बहू के घर का सारा इंतजाम करा और सब समझा कर आ गई | वो बहू से बोली, “तुम अपने घर इधर आ जाओ, बच्चों के साथ मुश्किल होती होगी|” बहू बोलती, “हम आपकी कृपा से सब ठीक ढंग से कर लेंगे, आपकी मदद की जरूरत हुई तो बुला लेंगे|” सास फिर भी चक्कर लगाती रहती और हैरान देखती कि “बहू सुवह चार बजे उठ सब काम सम्भाल लेती है| बेटे को क्रैच छोड़ आते हुये ले आकर फुर्ती से मेहमानों और सबका पूरा ध्यान रखती है| हर चीज़ करीने और हर काम अपडेट रहता था|”
छुट्टियों में नन्द राधा आई बोली, “देखा भाई साहब। कितना ध्यान रखती है, हम सबका हमारी भाभी रमा। सुबह घर का सारा काम करके ऑफिस जाती है और आते ही फिर अपने कामों में लग जाती है। बहू कहती है, “आप सबकी जिम्मेदारी मेरी है। आपने ही तो मुझे सिखाना और मेरी सारी खुशियों का ध्यान रखना है। आप सबके आशीर्वाद ही हमारे साथ हैं। सदा मुझे आगे बढने का विश्वास और हौसला देते है। इस विश्वास से अपनी जिम्मेदारियों को भला कैसे छोड़ सकती हूं मैं?” नन्द राधा, “सच में माँ और पिता जी अपनी समझ से बहू को बेटी बना लिया”कहते हुए नन्द ने भाभी को गले लगा लिया। समझी ,” नये कम्पूटर जमाने का नया चलन|”
— रेखा मोहन