जाने किस सफर गया
वह जो लिखते थे मेरी बिखरी ज़ुल्फो पे ग़ज़ल
आज यह भी न पूछा कि तुम उलझी क्यों हो,
पूनम का चाँद कहते थे मेरे इस हंसीं चेहरे को
कभी यह भी न पूछा कि तुम बिफरी क्यों हो,
कभी यह भी न पूछा कि तुम बिफरी क्यों हो,
‘तेरी आँखे के सिवा इस दुनिया में रखा क्या है ‘-
कहने वाले ने न जाना किआज यह क्यों बरस रही हैं
वह ज़ालिम क्या जाने उसके दीदार को तरस रहीं हैं,काश वह अपना होता ,मेरे इस हाल पर ग़ज़ल लिखता
कुछ अपने दिल कि कहता , कुछ मेरे दिल कि सुनता
कहने वाले ने न जाना किआज यह क्यों बरस रही हैं
वह ज़ालिम क्या जाने उसके दीदार को तरस रहीं हैं,काश वह अपना होता ,मेरे इस हाल पर ग़ज़ल लिखता
कुछ अपने दिल कि कहता , कुछ मेरे दिल कि सुनता
और वो आया था एक मौसमी बुखार सा और उतर गया
मुझे यूं ज़िंदगी भर का रोग देकर जाने किस सफर गया
मुझे यूं ज़िंदगी भर का रोग देकर जाने किस सफर गया
— जय प्रकाश भाटिया