देखी है कभी किसी ने
मन पर पड़ी झुर्रियां
यह तो हमेशा
बचपन ही जीता है
ढूंढता रहता है
कच्ची पक्की कक्षा वाला स्कूल
कंकड़ उछालते हुए
स्कूल की चौखट तक पहुंचना।
पुराने मित्रों को ढूंढ़ते रहना
उनकी यादों में खोये रहना
छब्बीस जनवरी और पंद्रह अगस्त के लिए
चॉक घिसकर पुराने जूते चमकाना
तिरंगा तलाशना
प्रभात फेरी के लिए
सुबह चार बजे उठ जाना
लाइन में सबसे आगे
खड़े होने की होड़ में
मित्रों से झगड़ना
भारत माता की जय,
वंदे मातरम् चीख चीख बोलना।
अपने आप को बड़ा लीडर
मानकर
छोटी सी दुनिया में खुश रहना
टीचर के एक इशारे पर
दौड़ दौड़ कर काम करना
अपने को काबिल समझकर
खुश होना
टीचर की हर बात जानने की
कोशिश करना
उनका प्रिय विद्यार्थी बनने की
जुगत में रहना।
अपने पुराने टूटे फूटे घर का
बार बार फोटो देखना
अपनी किताबों वाला रैक
रात्रि के तीसरे पहर तक
स्वप्न में देखना
पुरानी साइकिल पर चढ़कर
अपने आप को हीरों समझना
पिता के डांटने पर
मां के पीछे छिप जाना
होली,दीवाली, दशहरे के लिए
अंगुलियों पर दिन गिनते रहना
क्यों अपने आप को बूढ़ा कहकर
अपना मजाक उड़ाते हो ?
क्यों अपनी बिंदास हंसी को
ताले में बंद कर मंद-मंद मुस्काते हो ?
चेहरे पर नकली मेकअप का
आवरण चढ़ाकर
क्यों दिखावे की चादर में
अपने आप को छिपाते हो ?
चेहरे की झुर्रियां तो सुंदरता हैं
पकी उम्र की
क्यों अपने मन पर झुर्रियों को बुलाते हो ?
मनोबल से मन युवा रहता है
मन के युवा रहने से
शरीर निरोगी रहता है
संसार में आनंदानुभूति
निरोगी,युवा और बचपन
ही कर सकता है।
देखो मत आईने में
चेहरे की झुर्रियों को
हटा सकते हो तो हटा दो
अपने मन पर पड़ी झुर्रियां को।
— निशा नंदिनी भारतीय
तिनसुकिया,असम