दर्द
कुछ दर्द अपवाद होते है
इतना असहनीय की
पल- पल आंखों में आंसू भर देते है
बीमारी का दर्द तो
दवाईयां असर कम कर देती है
पर जब अपनों से मिलते है
बेतहासा दर्द…. उम्मीद से परे
तो जिंदगी अबाक
कोमा में चले जाना सा लगता है
टूट जाता है इंसान
ढहते मकान सा
जिसमें रिश्तों के संग सजे थे घर आंगन
तब यू लगता है
नहीं है कोई अपना
रिश्ता नाता सब बेगाना
और तभी शायद एक अच्छा दोस्त ही
सहारा बनकर अपनेपन को सहेजता है
खून के रिश्तों में बंधा एक सच्चा ईमानदार इंसान
अपने लिए
अपमान तिरस्कार धोखा की खाई
खुद ही तैयार करता है
क्योंकि भला करने वाले का अक्सर
उसके अपने ही बुरा कर जाते है
स्वार्थी सम्बन्ध धन दौलत में सिमटकर रह गई है आज।
बबली सिन्हा
(गाज़ियाबाद)