कविता
गर उदास रहता हूँ तो भी कोई हाल नहीं पूछता,
आज ज़रा सा मुस्कुरा दिया तो सब वजह पूछते हैं
किसी के गम में शरीक होना इनकी फितरत नहीं
सब मुफ्तखोरी का माल उड़ाने का सबब ढूंढते हैं
जब बीमार था लाचार था, तब मदद को कोई न आया
आज ‘जश्न’ है तो सब “उस””काउंटर का रास्ता पूछते हैं
चले गए जब नाच गा के, खा पी के सब यार दोस्त
अब इस तन्हाई में हम कोई सच्चा ‘हमदर्द’ ढूंढते हैं
— जय प्रकाश भाटिया