वाह रे जागरूकता!
आज के दौर में हम सभी सफलता की सीढियों पर आंखे बंद करके इस कदर आगे बढ़ रहें है कि उसके नीचे क्या दब गया, क्या छूट गया, इसका ख्याल जरा सा भी नही है। हम लोग आज मंगल पर जीवन खोज रहें है, बगैर यह सोंचे कि वास्तव में हमारे जीवन में मंगल है कि नही ? बीते समय से यदि वर्तमान का मिलान किया जाये तो आज हमारी बाउली, पोखरे, नदियां, सब सूख रही हैं फिर भी हम जागरूक है, पशु, पक्षियों, पेंड, पौधों की संख्या में बेपनाह गिरावट देखने को मिल रही है फिर भी हम सभी आज शिक्षित है! प्रकृति हमसे रूठ रही है तो रूठने दो हम नित नव सफलताएं तो हांसिल कर रहे हैं!
वर्तमान समय में शिक्षा का स्तर काफी ऊंचा दिखाई दे रहा है वहीं दूसरी ओर हमारी सभ्यता का स्तर गिरता जा रहा है, हमारे घर तो बहुत बडे और आलीशान बन चुके है! किन्तु घरों में संस्कार के लिये कोई जगह नही है ? आज हम पढ़ लिख कर इतना मजबूत हो गये हैं कि सभी तो जाति के जाल में फंसा कर कई योजन तक घसीट रहे हैं! और अपनी वास्तविक मानव की जाति को मानने से इंकार कर रहें हैं! इसका यही कारण है कि आज के दौर में मानवों की इतनी संख्या हो चुकी हैं कि कई बार यह धरती डगमगा चुकी है किन्तु अफसोस यह है कि उनके अंदर मानवता देखने को नही मिल रही है ? लोगों के अन्दर सहनशीलता का सागर इतना विशाल है कि रत्ती भर की वस्तु के लिये, दो गज जमीन के लिये हम बाहुबल, धनबल का प्रदर्शन करने लगते है, और मरने मारने जैसी अराजकता का महौल पैदा कर सकते, यह सब करना इतना आसान नही है यह आज की शिक्षा और संस्कार का ही परिणाम है।
आज हम इतने ज्ञानी हो गये हैं कि ग्रहों से खेलना शुरू कर दिये हैं कुदरत की रची हुई हर इबारत को हम पीछे छोडना चाह रहें है और दो कदम आगे खडे होने की होड़ लगाये बैठे हैं! लेकिन शायद यह सभी भूल रहे हैं समय चाहे जो भी रहा हो हर समय में नियमों का उल्लघंन करने पर या करने वालों को दण्ड का प्रावविधान रहा है, बस फर्क सिर्फ इतना है कि किसी में सहनशीलता कम होती है तो किसी में अधिक होती है किन्तु जब सारी हदें पार होे जाती हैं तो दण्ड निश्चित है। जिस पर कुदरत ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया तरह तरह के रंगों से प्राकृतिक अलंकरणों सें जिसे साजाकर तैयार किया गया उसे हम पृथ्वी कहतें है और आज के मानव इसी से ऊब गये है ? यहां से पलायन करके किसी अन्य ग्रह पर जाना चाह रहें! यहां पर उत्पन्न समस्या का समाधान खोजनें की बजाय हम आज इसके त्याग पर उतर आये है,
अभी कुछ भी नही बिगडा है, यदि वास्तव में हम अभी से ही जागरूकता का परिचय देना शुरू करें तो सब संभल सकता है दूषित वातारवण को यदि हम सुधारने का प्रयास करें तो आने वाले दिनों में सुगन्धित समीर का प्रवाह किया जा सकता है। जीवन को सरल बनानें के लियेे अनेक प्रकार की सफलतओं को समय समय पर उपयोग किया जाये। हम इंसान है हमें भगवान और विज्ञान दोनो पर भरोसा करना है। क्योंकि एक अदृष्य शक्ति की असीम अनुकम्पा से ही हम इतना सब कुछ करनें में सफल हुये हैं जिस दिन मानव के अंदर यह बात उत्पन्न होगी कि हमारी सारी गतिविधियां कोई देख रहा तो जाहिर सी बात है कि उसके अन्दर आस्था जाग रही है तो अकस्मात ही उसके अन्दर सभ्यता और संस्कार दोनो उत्पन्न हो जायेगें, चारों दिशाओं में एक सुरम्य वातारण दिखाई देगा और बिना कहे बिना बताये सभी की जागरूकता दूर से झलकेगी।
राजकुमार तिवारी (राज)