प्रभु एक आश है तेरी
लिखी तक़दीर में क्या खूब
कभी समझ नही आती
अपने दूर चले गए
नादानी समझ नहीं पाए!
जब मैं थी एक गुड़िया
थे सबके आंचल के छांव
आज वो दिन भुल गए
अपने दूर चले गए!
आज बिखर गए क्यों सब
दिल में वैमनस्यता लिए हुए
बस पश्वताप का दीपक
मन में जला गए!
प्रभु एक आश है तेरी
मेरी नैया पकड़ रखना
तू पतवार बन जाना
मेरी नैया पार करा देना!
— विजया लक्ष्मी