गीत : पीड़ा के स्वर
उजियारे को तरस रहा हूं,अँधियारे हरसाते हैं !
अधरों से मुस्कानें गायब,आंसू भर-भर आते हैं !!
अपने सब अब दूर हो रहे,
हर इक पथ पर भटक रहा
कोई भी अब नहीं है यहां,
स्वारथ में जन अटक रहा
सच है बहरा, छल-फरेब है, झूठे बढ़ते जाते हैं !
अधरों से मुस्कानें गायब, आंसू भर-भर आते हैं !!
नकली खुशियां,नकली मातम,
हर कोई सौदागर है
गुणा-भाग के समीकरण हैं,
झीनाझपटी घर-घर है
जीवन तो अभिशाप बन गया,
मायूसी से नाते हैं !
अधरों से मुस्कानें गायब,आंसू भर-भर आते हैं !!
रंगत उड़ी-उड़ी मौसम की,
अवसादों ने घेरा है
हम की जगह आज ‘मैं ‘ ‘मैं ‘ है,
ये तेरा वो मेरा है
फूलों ने सब खुशबू खोई,पतझड़ घिर-घिर आते हैं !
अधरों से मुस्कानें गायब,आंसू भर-भर आते हैं !!
— प्रो.शरद नारायण खरे