गीत/नवगीत

गीत : पीड़ा के स्वर

उजियारे को तरस रहा हूं,अँधियारे हरसाते हैं !
अधरों से मुस्कानें गायब,आंसू भर-भर आते हैं !!

अपने सब अब दूर हो रहे,
हर इक पथ पर भटक रहा
कोई भी अब नहीं है यहां,
स्वारथ में जन अटक रहा

सच है बहरा, छल-फरेब है, झूठे बढ़ते जाते हैं !
अधरों से मुस्कानें गायब, आंसू भर-भर आते हैं !!

नकली खुशियां,नकली मातम,
हर कोई सौदागर है
गुणा-भाग के समीकरण हैं,
झीनाझपटी घर-घर है

जीवन तो अभिशाप बन गया,
मायूसी से नाते हैं !
अधरों से मुस्कानें गायब,आंसू भर-भर आते हैं !!

रंगत उड़ी-उड़ी मौसम की,
अवसादों ने घेरा है
हम की जगह आज ‘मैं ‘ ‘मैं ‘ है,
ये तेरा वो मेरा है

फूलों ने सब खुशबू खोई,पतझड़ घिर-घिर आते हैं !
अधरों से मुस्कानें गायब,आंसू भर-भर आते हैं !!

— प्रो.शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]