ऐ जिन्दगी बता
रेत पर लिखी इबारतों जैसी
तेरी बातें
उड़ जाती है हल्की सी हवा के
ऐ जिन्दगी बता तेरा वजूद क्या है ।
कागज़ पर स्याही से
रची कविता सी तू
मिट जाती है वक्त के साथ
ऐ जिन्दगी बता
तेरा वजूद क्या है ।
तपती धूप में जलती रेत सी
बादलों के स्नेह से नहा
मौन सी बस चलती जाती
ऐ जिन्दगी बता
तेरा वजूद क्या है ।
सुख के अहंकार में रची बसी
दुखों के दुराग्रह से
साथ शरीर का छोड़ जाती
ऐ जिन्दगी बता
तेरा वजूद क्या है।
ढ़लती काया के साथ
माया का मोह लिये
नहीं छोड़ती शरीर का साथ
फिर भी ले जाती मौत
ऐ जिन्दगी बता
तेरा वजूद क्या है ।
कहीं चिता पर
तो कहीं कफन में लपेटकर
दफन हो जाती
फिर मिल जाती मिट्टी में
ऐ जिन्दगी बता
तेरा वजूद क्या है ।