बौद्ध मत में अंधविश्वास
आजकल अम्बेडकरवादी बौद्ध मत को वैज्ञानिक बताते हैं. यह बौद्ध अन्धविश्वास को भूल जाते हैं. चित्र में श्रीलंका के मन्दिर का दृश्य है. इसमें बुद्ध का दांत है जिसकी आज भी पूजा की जाती है. इस दांत का विवरण चीनी यात्री ह्यून्सांग न्यू किया है. वैज्ञानिक कहते हैं कि यह किसी मनुष्य का दांत नही हो सकता.
आजकल राजेंद्र प्रसाद सिंह आदि अंबेडकरवादी लेखक फाहियान और ह्वेनसांग नामक बौद्ध विदेशी यात्रियों के यात्रा वृत्तांतों की बात करते हैं। पर इनको पढ़ने से उस समय बौद्ध मत में प्रचलित जड़पूजा,अंधविश्वास और अवैज्ञानिक पाखंडी बातों की पोल खुल जाती है।
बौद्धों का अपने मत को वैज्ञानिक कहना ही सबसे बड़ा झूठ है। हमारे पास ब्रजमोहनलाल वर्मा की पुस्तक “फाहियान और हुएनसंग की भारत यात्रा” नामक पुस्तक रखी है। उसी पुस्तक से इस विषय पर कुछ प्रमाण देते हैं। हमने संक्षेप में उनके लेख का सार दे दिया है। विस्तार से वर्णन पुस्तक में देख सकते हैं।
पाठकगण! पुस्तक के उद्धरण और उस पर हमारी समीक्षा पढ़कर आनंद लें-
१:- बुद्ध के टूटे दांत की पूजा-
यहां बुद्धदेव की एक निशानी है-वो है पत्थर का पीकदान! यहां पर बुद्ध का एक टूटा हुआ दांत है,जिस पर लोगों ने स्तूप बना दिया। इसके पास प्रायः १००० भिक्षु रहते हैं।यहां हीनयान मत का अधिक प्रचार है।
( पेज १० पैराग्राफ २)
समीक्षा- वाह रे जड़पूजकों! पीकदान और टूटे दांत तक की पूजा करते हो और हिंदुओं को पाखंडी मूर्तिपूजक कहते हो! ये तो ऐतिहासिक बात है, अब यहां तो किसी ब्राह्मण ने मिलावट नहीं की।
२:- बौद्धों का स्वर्ग और मैत्रेय बुद्ध की मूर्तिपूजा-
प्राचीन काल में एक अर्हत निवास करता था। उसके पास अलौकिक शक्तियां थीं। वो अपनी शक्ति से तुषित नामक स्वर्गलोक में गया। वहां वो अपने साथ विश्वकर्मा को ले गया, जिसने भावी बुद्ध, मैत्रेय बुद्ध की मूर्ति बनाई। मूर्ति लकड़ी की थी, और कुछ विशेष तिथियों में इनसे प्रकाश निकलता था। चारों ओर से राजा इस मूर्ति की प्रतिष्ठा करने आते थे।
( अध्याय ७ पेज ११ पैराग्राफ ३,४)
समीक्षा- अब बौद्धों के स्वर्ग और विश्वकर्मा देवता भी निकल आये! हिंदुओं के स्वर्ग नरक को पाखंड कहते हैं, और यहां खुद “तुषित लोक” नामक स्वर्गलोक मान रहे हैं। इस स्वर्ग से वो अर्हत विश्वकर्मा को ले जाकर मूर्ति बनाता है। इस स्वर्गीय मूर्ति की पूजा राजा करता है। और लकड़ी की मूर्ति से प्रकाश निकल रहा है- वाह वाह! पता नहीं मूर्ति लकड़ी की बनी है, या रेडियम की है। हो सकता है ग्लिटर से उसको चमकाया जाता हो! हम आज ये स्वर्गीय प्रकाशवाली मूर्ति देखना चाहते हैं।
३:- बुद्ध के पांव का चमत्कारी चिह्न-
सिंधु नदी के पास बूचांग देश में जब फाहियान आया, तब उसने देखा कि यहां सर्वत्र बौद्ध मत व्याप्त है। वहां एक कहानी प्रचलित है, जो है-
गौतम बुद्ध इस जगह पर आये थे। वहां अपने पांव की छाप छोड़कर गये थे। जिज्ञासु लोगों के देखने से वो पैर का चिह्न बढ़ और घट सकता था। ये चमत्कार आज भी होता है।
(अध्याय ८ पेज १३ पंक्ति १०)
समीक्षा- एक और नायाब गप्प सुनिये! बुद्ध के पांव का निशान बढ़ता और घटता है! यदि ऐसे गपोड़े न हांके होते, तो बौद्धों के मत को आम जनता स्वीकार कहां करती?
४:- बुद्ध के सर की हड्डी!
पाक्यून और सांग किंग नामक फाहियान के साथी इस भिक्षापात्र का दर्शन पूजन और प्रतिष्ठा की। फाहियान फिर आगे बढ़ा जहां पर बुद्ध की खोपड़ी की हड्डी रखी हुई थी।
( अध्याय १२ पेज १७)
समीक्षा- यहां पर जड़पूजा का पाखंड तो पाठकों ने देख ही लिया होगा! कभी बुद्ध के दांत की पूजा करते हैं, कभी खोपड़ी की हड्डी की! क्या बौद्धों ने बुद्ध के शरीर की सारी हड्डियां तोड़कर ही स्तूप बनवाये हैं?
यहां पर राजा और अन्य लोग हड्डी को फूल फल सुगंध आदि से पूजन करते हैं। यहां प्रसाद भी चढ़ाया जाता है हड्डी पर! और हिंदू लोग अपनी मूर्तियों पर ये सब चढ़ा लें तो पाखंड हो गया!
इस तरह से फाहियान व ह्वेनसांग के लेखों में बौद्ध मत के नाम पर अनेक असंभव चमत्कार, गप्पें, जड़पूजा की बातें आदि हैं। ये पूरी तरह से अनैतिहासिक हैं।
राजेंद्र प्रसाद सिंह आदि बौद्ध मत के नेता त्रिपिटक में तो मिलावट मानते हैं, पर क्या फाहियान और ह्वेनसांग का इतिहास भी मिलावटी मान लेंगे? क्यों नहीं सत्य को स्वीकार कर लेते कि बौद्ध मत में अखंड अंधविश्वास और पाखंड है? क्यों नहीं वेद की शरण में आ जाते?
ये हमने केवल हल्की सी झांकी दिखाई है, दरअसल इन गप्पों की लिस्ट बहुत बड़ी है!
पुस्तक के पीडीएफ का लिंक देते हैं। पाठकगण यहां जाकर डाउनलोड कर सकते हैं:-
*फाहियान और ह्वेनसंग की भारत यात्रा
https://drive.google.com/file/d/1g4QDmtsoVR3ILmz3QziCB8NyaEAtPUwI/view?fbclid=IwAR0cHOzib8YuQrexJ26PmGOoCZ_2dkkBthkFgAnokq-iPINH4FTGaGAXu3Y
लेखक — कार्तिक अय्यर