लघुकथा

मत चूकै चौहान

आज सैर पर जाते हुए एक पुलिस अफसर को जीप में जाते हुए देखा. अफसर थे, इसलिए जीप ड्राइवर चला रहा था. वे स्वयं मोबाइल पर बात करते हुए खुली खिड़की पर कोहनी टिकाए जा रहे थे. वे तो मोबाइल में मस्त थे, पर मुझे चौहान साहब की याद आ गई.
चौहान साहब हमारे पड़ोसी और पारिवारिक मित्र हैं. ऐसे ही ड्राइवर के साथ जाते हुए एक कार ऐक्सीडैंट में उनकी दाहिनी भुजा कोहनी तक कट गई थी (उस समय वे पीछे की सीट पर बैठे थे). अस्पताल तक पहुंचते-पहुंचते वह भुजा निर्जीव हो गई और जुड़ नहीं पाई. जब उन्हें होश आया तो, अपनी दाहिनी भुजा कटी देखकर कुछ क्षणों तक सोच में पड़ गए कि, अब वे कार कैसे ड्राइव करेंगे, बिज़नेस कैसे चलाएंगे? लेकिन आज उनका मेडीकल मशीनों का बिज़नेस देश-विदेश में बखूबी चल रहा है.
”चौहान साहब, आप गाड़ी बहुत अच्छी ड्राइव करते हैं. कार चलाते-चलाते आप बिज़नेस की बातें भी खूब कर लेते हैं. दाहिनी भुजा के बिना यह सब कैसे संभव हो सका?” उनके साथ गाड़ी में जाते-जाते मैंने उनसे पूछा था.
”जैसे ही मुझे अपनी कटी बाजू का पता चला, मैंने अपनी चेतना को जगाया. अपनी पूरी संकल्प शक्ति को समेटते हुए मैंने पत्नि से स्लेट और चॉक मंगाने को कहा. अस्पताल में ही लेटे-लेटे मैंने अपनी दृढ़ संकल्प शक्ति से लैफ्ट हैंड से लिखने व अपने हस्ताक्षर करने में महारत हासिल कर ली.” चौहान साहब कहीं से भी मायूस नहीं लग रहे थे.
”धीरे-धीरे मैंने हर काम लेफ्ट हैंड से करना शुरु कर दिया. एक पल को भी अपनी दाहिनी भुजा को याद नहीं किया, जो मेरे पास था, उसी से योग अभ्यास व प्राणायाम से लेकर ड्राइविंग व बिज़नेस का काम स्वतंत्रता से करना सीख लिया.” चौहान साहब कहते जा रहे थे.
”महीने में दो बार तो बिज़नेस के काम से बखूबी विदेश यात्रा भी कर लेता हूं. धीरे-धीरे मोबाइल में नए-नए ऐप आते गए और मेरा काम सरल होता गया.”
मेरा गंतव्य आ गया था और मुझे उतरना था. उनकी कार ड्राइविंग तो इतनी कमाल की थी कि, उनकी गाड़ी से उतरने का मन ही नहीं कर रहा था. मेरे मन में एक ही बात आ रही थी- ”मत चूकै चौहान”.
गौरी के राजदरबार में तीरंदाजी कौशल को प्रदर्शित करने के दौरान चंद बरदाई ने दृष्टिबाधित पृथ्वीराज की चेतना को कविता के माध्यम से जगाया था-
“चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण,
ता ऊपर सुल्तान है मत चूकै चौहान.”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “मत चूकै चौहान

  • लीला तिवानी

    एक बार अपनी चेतना को जगा लो. अपनी पूरी संकल्प शक्ति को समेट लो, तो साहस जाग्रत हो जाता है और लक्ष्य अपने आप चलकर सामने आ जाता है, सब काम आसान हो जाता है.

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