गीतिका
मोहब्बत के मायने और दायरे ही सिमट गए,
हवस अपनी बुझाने को दोनों ही चिपट गए।
शर्म नहीं रही है जमाने की आज किसी को,
भरे बाज़ार मिलते ही एक दूजे से लिपट गए।
कभी गाल चूमें कभी चूमने लगे होंठ दोनों,
बस इतने में ही लड़का लड़की निपट गए।
लाख कोशिश करना तुम ढूंढ़ने की आज,
कोई नहीं मिलेंगे ऐसे, जो नहीं निकट गए।
हवस में बने अँधे दोनों किसको दोष दें हम,
“सुलक्षणा” वर्तमान में हालात बन विकट गए।
— डॉ सुलक्षणा