विकृति भरपूर,
प्रकृति का साथ
जीवनी -शक्ति का हाथ,
प्रकृति की विकृति ही जगत,
जगती सृजन सृष्टि,
प्रकृति और पुरुष का योग
नवीन सर्जना का सुयोग।
प्रकृति क्या है?
ब्रह्मांड की ज्या है,
मापती हुई
अखिल ब्रह्मांड का व्यास,
सृष्टि का विन्यास,
एकरूपता से अनेकरूपता
पुनः अनेकरूपता से एकरूपता,
साम्यावस्था या प्रलयावस्था,
स्वरूपवस्था में
अव्यक्त प्रकृति,
व्यक्त होते ही
विविधरूपिणी सृष्टि।
योग से सृजन
नव निर्माण
गतिमयता जीवन,
प्रकृति से योग
योग से प्रकृति
जीवमात्र की सुगति
सद्गति सुगति।
स्वशासित प्रकृति
अनवरत अहर्निश
गतिमान
न कभी विराम विश्राम
अविराम अभिराम।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’