रिमझिम रिमझिम बुँदियाँ लाई।
हम नहाएँगे बाहर जाकर,
सड़क खेत गलियों में आकर,
दौड़ भाग कर धूम मचायें,
नाचें कूदें गाने गाएँ,
लगती वर्षाऋतु मनभाई।
अम्मा देखो…..
बरस रहा है झर -झर पानी,
नहीं पेड़ बेलें मुरझानी,
डालें झूम रही हैं कैसे!
हमको बुला रही हैं जैसे,
हरी पत्तियाँ ख़ूब नहाईं।
अम्मा देखो …..
छोड़ घोंसले पंक्षी भागे,
भीग गए पर जब वे जागे,
दुबक गए कोने में जाकर,
पंख सुखाते हैं फैलाकर,
बच्चे ढँक चिड़िया चिचिआई।
अम्मा देखो …..
भर -भर बहते नाले -नाली,
छत से बहती तेज पनाली,
खेत भरे गलियों में पानी,
ढही मेंड़ नदिया तर्रानी,
गड्ढे भरे भर गई खाई।
अम्मा देखो….
साँझ हुई दादुर दल बोले,
टर्र-टर्र करते मुख खोले,
अंडे तैर रहे जल ऊपर,
फुदक रहे कुछ दादुर भूपर,
मेढक ने मेढकी बुलाई।
अम्मा देखो ….
खूंटा तोड़ भागती भैंसें,
गैया रँभा रही कुछ ऐसे,
रेवड़ में मिमियाती बकरी,
बिल सेभागे चुखरा चुखरी,
श्वान देख बिल्ली शरमाई।
अम्मा देखो….
वर्षा से सब खुश नर -नारी,
कृषक नाचते मंगलकारी,
चेहरों पर मुस्कान खिली है,
कमल कमलिनीताल लिली है
धरती माँ की प्यास बुझाई।
अम्मा देखो ….
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’