व्यंग्य : कुत्ते की चोट बिल्ली पर
खाया प्रदूषित भोजन। फैल गया देह में जहर । अस्पताल तक लाए। इलाज़ शुरू भी नहीं हुआ। डाक्टर दोषी। डाक्टर पर टूटा कहर। पीटा गया बेचारा डाक्टर।
बड़े -बड़े नाले। न सफाई न कोई देखने वाले। पॉलीथिन के अंबार। पट गए नाले। सारा दोष प्रशासन पर। आम आदमी दूध का धुला। फैल गई महामारी। मरने लगे बच्चे और गरीब। पिटने लगे हॉस्पिटल के डाक्टर।
गंदगी के ढेर। जल प्रदूषित। वायु प्रदूषित। सब्जी प्रदूषित। फल रासायनिक से पकाए। तरह -तरह की बीमारियां फैलायें। बीमारियां बढ़ती ही जाएँ। मरीज को क्लिनिक पर भर्ती करायें। डाक्टर न बचा पाए। फ़िर डाक्टर ही पिट जाए।
पैसे नहीं हैं मरीज पर। गरीब है बहुत। डाक्टर निःशुल्क इलाज़ न करे। अपनी जेब से फ़ीस न भरे, तो फिर क्या डाक्टर पिटा करे।
बाबू , अधिकारी ,नेता कितना भी भृष्टाचार करे। व्यवसायी चाहे कम तोले कम नापे, पर उनके लिए सबकी मांफी। बलात्कारी, भृष्ट प्रशासक, पीकर चलाने वाले चालक, समाज और देश में आतंक फैलाने वाले सफेदपोश आतंकवादी । निकलते हैं पहनकर धुली खादी। उनको भला कौन पीटता है।क्योंकि वे तो सभी निरीहों को पीटते औऱ पिटवाने की उचित व्यवस्था करते हैं। पिटता तो है , केवल जीवन दान देने वाला डाक्टर ही । हर हाल में केवल गरीब बिल्ली ही चोट खाती है, कुत्ते तो अपनी टाँग उठाकर दूर बच निकलते हैं।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’