साथ -साथ सात सुर,
सुर में सुर मिलाते,
नया संगीत सजाते,
श्रवण से हृदय में-
उतर -उतर जाते,
कभी मेघ मल्हार बन-
धरा पर मेघ बरसाते,
कभी राग दीपक से-
अनजले दीपक जलाते।
स र ग म के ये सात सुर
‘सुर ‘ हैं ‘असुर’ नहीं,
स्वर हैं व्यंजनों के
बदलते हुए रूप रंग आकार,
व्यंजनों का रस रीति शृंगार,
जुड़ते हुए ऊपर या नीचे,
कभी आगे कभी पीछे-
सोने में सुहागा हैं,
जो पा ले वही सुभागा है,
अन्यथा अभागा है।
माला के अलग -अलग धागे,
पिरोते मोतियों को विराजे,
अलग -अलग रंग,
अलग ही सुगन्ध,
कभी तीव्र कभी मंद,
अप्रतिबन्ध रूप स्वच्छन्द।
स र ग म में सात सुर,
संगीत के प्राण,
साहित्य और कला के त्राण,
न कहीं पुच्छ न विषाण,
होंगे भी क्यों ?
मानवता का सुसन्देश,
मानवों की पावन धरा पर,
गुंजायमान माँ शारदा की
वीणा का मधुर स्वर,
सत्यं शिवम सुंदरम का
घर -घर शाश्वत कल रव,
जहाँ सत्य है ,
शिव है ,
और सुंदर है,
वहीं ‘शुभम’ है,
सफ़लता का मंदिर है।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’