अनोखी राजनीति
शब्दों के तीर चलाते, बाणों की वर्षा करते,
आते चार साल बाद करने मानवता के मन का शिकार,
देखो-देखो वे कैसे हैं मतलबी शिकारी ?
दूर तक बजाते जाते अपनी ढपली अपना राग,
हर किसी को नाचने पर मजबूर करते अपनी ढपली पर,
देखो-देखो वे कैसे हैं अनोखे मदारी ?
किसी भी हद तक गिर जाते, ना कभी आती शर्म,
देना तो हमें ही देना, भीख माँगने पर भी ना आती शर्म,
देखो-देखो वे कैसे हैं अनोखे भिखारी ?
किसी भी चीज़ पर होकर सवार, आते दुनिया के सामने,
ना किसी से शर्म ना किसी से हताश,
देखो-देखो वे कैसे हैं अनोखे सवारी ?
अपना काम बनाने में कभी ना आती शर्म जिनको,
सीटें पूरी करने को फैला देते सारे माया-जाल,,
देखो-देखो वे कैसे हैं अनोखे उधारी ?
मौलिक रचना
नूतन गर्ग (दिल्ली)