कविता

अनोखी राजनीति

 

शब्दों के तीर चलाते, बाणों की वर्षा करते,
आते चार साल बाद करने मानवता के मन का शिकार,
देखो-देखो वे कैसे हैं मतलबी शिकारी ?

दूर तक बजाते जाते अपनी ढपली अपना राग,
हर किसी को नाचने पर मजबूर करते अपनी ढपली पर,
देखो-देखो वे कैसे हैं अनोखे मदारी ?

किसी भी हद तक गिर जाते, ना कभी आती शर्म,
देना तो हमें ही देना, भीख माँगने पर भी ना आती शर्म,
देखो-देखो वे कैसे हैं अनोखे भिखारी ?

किसी भी चीज़ पर होकर सवार, आते दुनिया के सामने,
ना किसी से शर्म ना किसी से हताश,
देखो-देखो वे कैसे हैं अनोखे सवारी ?

अपना काम बनाने में कभी ना आती शर्म जिनको,
सीटें पूरी करने को फैला देते सारे माया-जाल,,
देखो-देखो वे कैसे हैं अनोखे उधारी ?

मौलिक रचना
नूतन गर्ग (दिल्ली)

*नूतन गर्ग

दिल्ली निवासी एक मध्यम वर्गीय परिवार से। शिक्षा एम ०ए ,बी०एड०: प्रथम श्रेणी में, लेखन का शौक