आदत के अधीन
आलोक को शराब की बुरी लत लगी। माता-पिता ने उसे प्यार से समझाया, आदत छोड़ने के लिए। वो नहीं सुधरा तो फिर डराया-धमकाया। इसके बावजूद शराब नहीं छूटी। थक-हारकर माता- पिता ने आलोक को मारा-पीटा भी। इसके बावजूद उसका शराब पीना जारी रहा। सारे प्रयत्न आजमाने के बाद आखिरी हथियार बचा बेटे को ‘रिहैबिलिटेशन सेंटर‘ ले गए। काउंसलर ने गंभीरतापूर्वक सारी बातें सुनी और माता-पिता से आलोक को अकेला छोड़ने को कहा।
काउंसलर ने आलोक को ‘हिप्नोटाईज‘ करते हुए कहा, ‘अपनी आंखें मूंदो। सोचो, तुम इस समय कश्मीर पहुँच चुके हो। वहां की बर्फीली पहाड़ियों पर घूम-फिर रहे हो। सुहाना मौसम है। कहो, अब कैसा अनुभव कर रहे हो? कुछ खाने की इच्छा हो रही है?‘
आलोक की आंखें मूंद चुकी थी। उसने जवाब देते हुए कहा, ‘मैं इस समय कश्मीर की वादियों में पहुँच चुका हूँ। अद्भुत, अलौकिक, आनंददायक वातावरण है। शरीर को कंपकंपा देनेवाली ठिठुरन है। सियाचिन की सरहदों पर पहरा देनेवाले साहसी सिपाईयों का स्मरण हो रहा है। उन सभी सैनिकों को सलाम ! आपने खाने की बात पूछी है तो दो भूने हुए पापड़ चाहिए। इस सर्दी को भगाने का सर्वोत्तम उपाय सूझ रहा है। विस्की से भरा हुआ पूरा पौवा पीकर, रजाई ओढ़कर, गुड़मुड़ होकर चैन की गहरी नींद के आगोश में जाना पसंद करूंगा। ‘आलोक की बातें सुनकर, काउंसलर ने अपना सिर पकड़ लिया।
— अशोक वाधवाणी