मयखाना
वो मयखाना था या दवाखाना,
मैं कुछ भी समझ ही ना पाया।
पता नही क्या था मय के प्याले में,
मैं अपना हर गम भुला आया।
आँखो के सामने रंगीनियां छाई थी।
हर परेशानी को वहाँ मौत आई थी।।
एक संगीत होठो पर खुद ही आया।
दरिया दर्द का , आँखो से छलक आया।।
हर एक वहाँ सच्चाई में नहाया हुआ था।
अपने झूठ को सबने दफनाया हुआ था।।
सभी इबादत के दरो पर मैं घबराया था।
मयखाने में दर्द मेरा मुझसे घबराया था।।
मयखाने में दुःखो से सकून मैंने पाया था।
उतरा नशा,दर्द फिर चेहरे पर उतर आया था।।
कुछ ऐसा हो कि नशे में जीवन निकल जाए।
शायद तभी सभी दुःखो को मौत आ जाए।।