व्यंग्य – नकल का सुख
नकल का भी अपना ही सुख है।हम बचपन से नकल करते -करते बड़े हो गए। छोटे थे तो अपने माता -पिता और बड़ों की नकल की।नकल से बहुत कुछ सीखा ।और इस प्रकार नकल से असल रूप में तैयार हो गए। पर नकल करने का हमारा संस्कार नकली नहीं रहा। वह असली हो गया। नतीजा यह हुआ कि नकल हमारा जन्मसिद्ध अधिकार ही हो गया।अब तो बिना नकल के हम आगे बढ़ना ही नहीं चाहते।
जैसे – तैसे करके स्कूली शिक्षा पार कर ली । कालेज में भी पहुँच गए ।यहाँ पर देखा तो बहुत ही प्रसन्नता हुई। यहाँ हमें न पुस्तकों की ज़रूरत थी न पढ़ने लिखने की। और तो और यहाँ जाकर हाज़िरी देना भी भी ज़रूरी नहीं रहा।जाओ तो ठीक और नहीं जाओ तो और भी ठीक। न टीचर चाहते कि छात्र कॉलेज में आएं न कालेज के मालिक ही चाहते कि बच्चे आएं क्योंकि छात्र आएंगे तो उन्हें टीचर रखने पड़ेंगे और टीचर होंगे तो उन्हें वेतन भी देना ही पड़ जाएगा। इसलिए यही हमारे हित में है कि छात्र कालेज में आएं ही नहीं। बस एक दो क्लर्क टाइप लड़के रख लिए जाएं जो समय -समय पर फीस जमा करने , छत्रवृत्ति फार्म , परीक्षा फॉर्म, परीक्षा फीस आदि जमा करने के लिए उन्हें मोबाइल से सूचना देते रहें। इधर छात्रों को औऱ भी बहुत सी जिम्मेदारियों का भी निर्वाह करना आवश्यक था। जैसे पत्नी की जिम्मेदारी ,रोजी -रोटी की जिम्मेदारी, पिताजी के आदेश को पूरा करने की लाचारी, क्योंकि पिताजी ही कब चाहते हैं कि बच्चे पढ़ – लिखकर गुणी बनें। मास्टर साहब से कह देंगे तो नकल तो मिल ही जाएगी।
जब बचपन से ही कभी कुछ नहीं पढ़े तो नकल करना तो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार ही बन जाता है। लेकिन लल्लू नकल के लिए भी अकल चाहिए। सो उतनी तो है ही। परीक्षा -हॉल में खड़े होकर वे बोलते जाएंगे औऱ हम लिखते जाएंगे। सी सी टी वी कैमरा लगा है तो क्या ? इतनी तो अकल उनमें भी है कि ऐसे हालात में नकल कैसे कराई जानी चाहिए। आखिर तो वे हमारे गुरू हैं। गुरू तो फिर गुरू ही हैं। वे कैमरे के चरणों मेंमें जाकर खड़े हो गए और कैमरे ने अपनी आँखें बन्द कर लीं। फिर क्या जो चाहो करो, जैसे चाहो करो। वे गैस पेपर थामे बोलते रहे हम लिखते रहे। एक -दो सवालों के उत्तर छूट गए तो क्या? पास तो हो ही जायेंगे। पुलिस में भर्ती हो जाएगी। और करना भी क्या है ? किश्मत ने जोर मारा तो प्राइमरी के मास्टर भी हो जाएंगे।
वास्तव में नकल का अपना बड़ा सुख है। हीरो -हीरोइनों से नकल करके नए-नए हेयर -स्टाइल आ रहे हैं। फ़टी हुई जीन्स पहनने का फैशन सिनेमा की ही देन तो है। मैले -कुचैले बिना क्रीज के कपड़े पहनने की नकल भी तो हमारे अविष्कारक अभिनेताओं की खोज है। जिसकी नकल में नई पीढ़ी दीवानी है।
कहा जाता है कि जो जितना अधिक प्रकृति के निकट है , वह उतना ही सुखी है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए आदमी भी भेड़ -चाल में बहुत अधिक आगे बढ़ गया है। क्या जरूरत है अपने दिमाग पर जोर डालने की? ‘महाजनो येन गतः स पंथा:। अर्थात महा जन (बड़े लोग ) जिस मार्ग पर जा रहे हों , उस मार्ग पर आँखें बंद करके चलते चले जाना ही उचित है। इस प्रकार नकल से कुछ भी सीख लेने का दायरा बराबर बढ़ता जा रहा है। ‘नकल’ शब्द बड़ा व्यापक है। ‘न’ अर्थात नहीं, और कल अर्थात भविष्य ,आने वाला कल। जिसका कोई आने वाला कल न हो , अर्थात जिसका कोई भविष्य न हो, उसे ‘नकल’ जैसे महान शब्द की संज्ञा से अभिहित किया जाता है। कहने का आशय यह है कि नकल मात्र वर्तमान -जीवी है। उसे भविष्य की चाहत है, न चिंता।वह तो केवल आज और अभी में विश्वास करती है। जब हमारा आज अर्थात वर्तमान सुधर जाएगा तो क्या अतीत औऱ क्या भावी , सब स्वतः सुधर ही जाने हैं। इसलिए प्यारे संतो! केवल औऱ केवल नकल यानी वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करते हुए कल की मत सोचो। न बीते हुए कल की न आने वाले कल की। सब कुछ नकल में रहस्यमय रूप से इस प्रकार छिपा हुआ है जैसे रात के नीचे दिन, अँधेरे के पीछे उजाला , चंन्द्रमा के पीछे सूरज का गोला, अकर्मण्यता के पीछे मेहनत का निवाला। इसलिए जितना भी हो सके वही गुर हासिल करो जिससे नकल को और भी प्रभावी बनाया जा सके।
ये सरकारें ये प्रशासन : सभी नकल के दुश्मन हैं। जो नकल रोकने के पीछे इतना पेट्रोल , पैसा औऱ समय बरबाद करते हैं। इतने पैसे से तो नकल करने के बहुत सारे संसाधन जुटाए जा सकते हैं।लाखों करोड़ों के धन का अपव्यय नकल रोकने में कर दिया जाता है। असली सुख तो नकल में ही है। नकल करो और सुख भोगो, बस यही नारा होना चाहिए। आज की नई पीढ़ी इस नारे में पूरा विश्वास करती है।
परीक्षा का भी एक विशेष मौसम होता है। इस मौसम में क्या छात्र , क्या अभिभावक और क्या टीचर: सभी एक ही रंग में रंग जाते हैं। जैसे वसन्त में होली , वैसे मार्च अप्रेल में परीक्षा की रंगोली। पिता स्वयम चाहते हैं कि बेटा ज़्यादा से ज्यादा नम्बर लाए । लड़का बी ए कर रहा है। शादी के लिए देखने वालों को बताने के लिए हो जाएगा। वक्त पर डिग्री काम आएगी। छात्र का तो संस्कार ही पूज्य पिताजी की कृपा से नकल का बन गया है , तो अवश्य ही मास्टर जी से सिफ़ारिश करेंगे कि यदि कृपा हो जाए तो वे उन्हें खुश करने में कोई कमी बाक़ी नहीं रखेंगे।कॉलेज मालिक को ये खुशी होगी कि बिना हर्रा फ़िटकरी के रिज़ल्ट का रंग चोखा हो जाएगा। इस प्रकार त्रिगुणात्मक शक्ति के सशक्त सहयोग से नकल में चार चांद लग जाएंगे। आ हा हा नकल की कथा अनन्त है। नक़ल का सुख अनन्त है।ऐसा भी कोई संत है , जो कहे कि नक़ल अदन्त है। ये भूत भविष्य वर्तमान का सद्ग्रन्थ है ।
— डॉ.भगवत स्वरूप ‘शुभम’