परिणाम
”बेटी, साइकिल चलाना सीख ले, स्कूटी चलाना सीख ले, काम आएगा.” मां खुद पहले साइकिल, अब स्कूटी चलाती थीं, इसलिए बार-बार कहती थीं. बेटी सुना-अनसुना कर देती थी. न उसने साइकिल चलानी सीखी न स्कूटी. घर में बाकी सब चलाते थे, सबके साथ स्कूटी पर जाती थी, पर न उसे कभी सीखने की जरूरत महसूस हुई, न उसने ध्यान दिया. कहने पर जवाब मिलता- ”यूनिवर्सिटी के लिए यू स्पेशल की बढ़िया सुविधा मिल रही है न!” उसे पता था, कि ममी न तो ‘नहीं’ शब्द का प्रयोग करती हैं, न अपनी रचनाओं में लिखती हैं. उनको लिखना होता था- ”शैलेश इंग्लिश में टॉपर है, पर हिंदी ठीक से पढ़-समझ नहीं पाता.” तो वे लिखती- ”शैलेश हिंदी के बजाय इंग्लिश ठीक से पढ़ने-समझने में अधिक सक्षम है.”
पढ़ाई खत्म हुई तो यूनिवर्सिटी में द्वितीय स्थान हासिल किया, कैम्पस रिक्रूटमेंट से बढ़िया नौकरी मिल गई. फिर वही राग शुरु हो गया.
”घर के पास से ही तो चार्टर्ड बस शुरु होती है.” उसका जवाब होता था.
प्रोमोशन लेते-लेते पहुंच गई ऑस्ट्रेलिया.
ऑस्ट्रेलिया की यातायात व्यवस्था चकाचक, पर बस स्टैंड या लोकल ट्रेन स्टेशन तक जाने के लिए अपना वाहन हो तो ऑफिस पहुंच सकते हैं फटाफट. चौड़ी-चौड़ी सड़कों पर कार खड़ी करने की सुविधा भी मौजूद है. फिर वीरवार या वीक एंड में सारी शॉपिंग भी तो करनी होती है, बाकी दिन तो दुकानें शाम के 4 बजे बंद हो जाती हैं.
”अब तो कार लेनी आवश्यक है.” उसने मन में सोचा, लेकिन कार लेने के लिए कार सीखना आवश्यक था.
”कैसे सीखे?” उसने सोचा.
”मुश्किल थोड़े ही है, सभी तो कार का प्रयोग करती हैं, तेरी कुलीग मार्गी ने तो 50 साल की उम्र में कार सीखी.” मन ने समझाया.
ट्रेन में उसने किताब में पढ़ा-
”अगर आप कुछ सोच सकते हैं,
तो यकीन मानिए आप उसे कर भी सकते हैं.”
इसी यकीन के साथ आज उसे किसी भी छोटी-बड़ी गाड़ी की चाबी मिल जाए, आराम से ड्राइव कर सकती है. शायद उसकी ”टू व्हीलर नहीं, सीधे फोर व्हीलर सीखने की सोच” का ही यह परिणाम था.
इसी सोच को और आगे बढ़ाकर नई-नई तकनीक सीखने का उसका इरादा मजबूत होता गया.
यह लघुकथा नकारत्मकता से सकात्मकता की ओर चलती है. इस कथा का मंतव्य सीखने की किसी भी उम्र के साथ सही सोच और उसको सही समय पर उसका क्रियांवयन करना तो है ही, साथ-साथ न, नहीं या कोई भी इनकार्करने संबंधी किसी भी शब्द का प्रयोग नकारात्मक ऊर्जा बढ़ाकर सकारात्मक ऊर्जा को घटाता है. इसलिए सोच-समझकर यकीन के साथ कोई भी कार्य शुरु किया जाए, तो पक्के इरादे का सुपरिणाम सामने आता है और आगे भी इसी तर्ह बढ़ते रहने का संकल्प पक्का हो जाता है.