दोहे – भ्रूण हत्या और दहेज
बेटी का स्वागत करो,…ना कर तू संहार।
न हों धरा पर बेटियाँ, मिट जाये संसार।।
निर्मम हत्या भ्रूण की,….मत कर तू इंसान।
भ्रूण परीक्षण छोड दो, न लो उसकी जान।
भ्रूण हत्या तुम न करो, होकर तू नादान।
अस्तित्व न बेटी बगैर, अपने मन में ठान।
चंद दहेज की खातिर,.. रिश्तों को ना तोड़।
बहू तो घर की लक्ष्मी, ना उससे मुख मोड़।।
घर सहेजती है बहू,……..बहू से घर संसार।
शिक्षित बहू घर आएगी, निखरेगा परिवार।।
— सुमन अग्रवाल “सागरिका”
आगरा