कविता

खेल निराले तक़दीर के।

हंसते -हंसते पल में क्या हो जाता है।
जो रोता है कभी वो सब पा जाता है।

पल की खबर नहीं जहां में देखो तो;
फिर भी बरसों के लिए जोड़ा जाता है।

सब कुछ पाने की होड़ में अपनो को छोड़े;
रिश्तों को भूल फिर तन्हां खुद को पाता है।

यहां से शुरू हुआ था इक दिन सफ़र ;
आखिर वापिस वहीं लौट आ जाता है।

अंहकार में मानव फिर अपना धर्म भुला;
सच्चाई जान कर आखिर में पछताता है।

हैं खेल निराले तक़दीर के मगर क्या कहें;
जो समझे वो भव सागर से तर जाता है।

कामनी गुप्ता***
जम्मू !

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |