लघुकथा

पानी के आंसू

संवेदना शाम को कीर्तन में ”रात श्याम सपने में आयो—–” भजन गाकर आई थी और रात तक यह भजन उसको मस्ती में सराबोर किए रहा. शायद रात श्याम सपने में आ जाएं, दरश दिखा जाएं, मुरली सुना जाएं, उसके साथ रास रचा जाएं.
सपना आया, पर सपने में श्याम नहीं आए, जल ही जीवन वाला पानी आया.
”जिसे अब तक न समझे वो कहानी हूँ मैं,
मुझे बर्बाद मत करो, पानी हूँ मैं.” पानी ने अपना परिचय देते हुए कहा.
”अभी-अभी समाचार देखकर आई हो न! सिर्फ़ दस दिन का पानी शेष बचा है, वह भी तब जब हम राशन पर पानी देंगे.” पानी ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया था.
”शुक्र करो, दस दिन तक का पानी है, जल्दी ही एक समय ऐसा भी आने वाला है, कि एक-एक बूंद पानी को तरसोगे.” पानी ने संवेदना की वेदना को अपनी वेदना बना दिया था और अपनी व्यथा को मुखर करता जा रहा था.
” प्रकृति ने पेड़-पौधों, कीट-पतंगों, तितलियों, जुगनुओं, शहद की मक्खियों, ताल-तलैया, भांति-भांति के फल-फूलों से सजाकर यह दुनिया कितनी सुन्दर बनाई थी. मनुष्य का स्वार्थ एक-एक करके सभी को नष्ट करता जा रहा है. पेड़-पौधे काटे जा रहे हैं, ताल-तलैया सूख रहे हैं. बारिश का पानी इकट्ठा करने की किसी को चिंता नहीं है, इसलिए बाढ़ के रूप में तबाही भी हो रही है, पर इस बारे में कौन सोचे और कब सोचे?” पानी का मन भर आया था.
”एक समय कुएं-बावड़ी से पानी लाना पड़ता था, तब सब लोग मुझे किफायत से खर्च करते थे, अब आप लोगों को घर में हर जगह नल उपलब्ध होने के कारण बेरहमी से मेरा उपयोग करते हो.” जल ने भांप लिया कि उसकी बात सुनकर संवेदना को आश्चर्य हुआ और वह जानना चाहती है कि हम जल संचय और संवर्द्धन के लिए क्या कर सकते हैं.
”मनुष्य कोशिश करे तो क्या नहीं कर सकता! तुमने तो बस एक बार अपनी आवाज को रिकॉर्ड कर सोसाइटी के इंटरकॉम पर कहलवा दिया- ”पानी का सही इस्तेमाल करें, जल ही जीवन है.” और अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझ ली, फिर मुड़कर नहीं देखा कि पानी का सही इस्तेमाल हो रहा है कि नहीं! एक बात ध्यान से सुन-समझ लो, जल नहीं रहेगा, तो जीवन भी नहीं रहेगा. तुम्हें पता है न कि पृथ्वी का एक तिहाई जल है, लेकिन इस बड़ी मात्रा में मीठे जल का अनुपात बहुत थोड़ा-सा है. एक स्वस्थ वयस्क के शरीर में 35 से 40 लीटर जल की मात्रा हर समय बनी रहती है. साधारणतया दूध में भी 85 प्रतिशत जल होता है, यह सब तभी ठीक से चलता रहेगा, जब तुम जल की कद्र करोगे और सुनो अब तो सरकार पेट्रोल-डीजल पर भी वॉटर सेस लगा सकती है.” ऐसा लग रहा था मानो जल की अश्रुधारा बह निकलेगी. अभी भी खुद कुछ करने और दूसरों से करवाने की जल की बात पूरी नहीं हुई थी.
”अपनी चिर-तंद्रा को तोड़ो, समाज-सेवा से नाता जोड़ो, लोगों को समझाओ, बर्तन धोते समय पानी कम खपाएं. वाशिंग मशीन की जगह हाथ से कपड़े धोएं. वाशिंग मशीन एक बार में 90 लीटर पानी खपा देती है, वही काम तुम 20 लीटर में कर सकती हो, नहाने के लिए फव्वारे का नहीं बाल्टी का उपयोग करने से पानी की बचत संभव है, कार धोने के लिए पाइप का प्रयोग मत करो, आधुनिकता के नाम पर इलैक्ट्रिक फिल्टर का प्रयोग करने से कितना पानी व्यर्थ फेंकना पड़ता है, यह सोचकर मैनुअल फिल्टर पा प्रयोग करो, घर की हर फ्लश के सिस्टन में 1-2 लिटर वाली प्लास्टिक की बोतल में रेत भरकर रख दो तो फ्लश चलाने पर पानी कम खर्च होगा, ऐसी छोटी-छोटी बचत से भी बहुत बड़ा काम हो सकता है, कनौडिया सरसों का तेल का हाल देखा न! कितने मॉल्स में पूछा, नहीं मिला! एक दिन ऐसे ही मुझे भी ढूंढते रह जाओगे.” पानी के आंसू बह निकले, संवेदना ने हाथों की अंजलि से उनको रोकने की कोशिश की, वह अपनी अश्रुधारा भी रोक न सकी-
”जब किसी को खोने की नौबत आ जाती है,
तभी उसे पाने की क़ीमत समझ आती है.”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “पानी के आंसू

  • लीला तिवानी

    पीने के पानी की कमी के अलावा भी पानी और मनुष्य के बहते आंसू अपनी व्यथा बयां करते हैं. एक तरफ बूंद-बूंद बरसात को तरसता पूरा उत्तर भारत, दूसरी तरफ महाराष्ट्र में बरसात के कहर ने तबाही मचा रखी है. लगातार हो रही बारिश की वजह से मुम्बई में जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। बारिश के कारण वित्तीय राजधानी जगह-जगह जलमग्न है और शहर में दीवार गिरने की एक घटना में 22 लोगों की जान चली गई। बारिश के चलते नहीं टला खतरा, महाराष्ट्र में मृतकों की संख्या 36 हुई.

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